Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 499
________________ महाबंध द्विदिबंधाहियारे पगदिसमुदाहारो ६८०. पगदिसमुदाहारे त्ति तत्थ इमाणि दुवे अणियोगद्दाराणि पमाणाणुगमो अप्पा बहुगेति । ४८६ पमाणाणुगमो ६८१. पमाणाणुगमो पंचणाणावरणीयाणं असंखेज्जा लोगा द्विदिबंधझव सागट्ठाणाणि । एवं सव्वासिं पगदीणं याव अणाहारगे त्ति णादव्वं । णवरि अवगदे सुहुम संपराइगे अंतमुत्तमेत्ताणि अज्जवसाणद्वाणाणि । एवं पमाणानुगमो समत्तो । अप्पा बहुअं 1 ६८२. अप्पाबहुगं दुविहं- सत्थाणअप्पा बहुगं चैव परत्थाणअप्पा बहुगं चैव । सत्थाणअप्पा बहुगं पदं । दुविधो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण पंचणाणावरणीयाणं सरिसाणि अज्झवसाणट्ठाणाणि । सव्वत्थोवाणि थीणगिद्धि०३ द्विदिबंध ज्ावसाणाणाणि । णिद्दा- पचला० द्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । चदुदंसणा ० दिबंधझवसाणट्ठाणाणि विसे० । सव्वत्थोवा सादस्स ट्ठिदिबंधझवसाणट्ठाण ० । असादस्स ट्ठिदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । सव्र्वत्थोवा ० हस्सरदि० हिदिझवाण० । पुरिस० ट्ठिदिबं० विसे० । इत्थि० द्विदिवं असंखेज्जगुणाणि । णवंस० प्रकृतिसमुदाहार ६८०. प्रकृतिसमुदाहारका प्रकरण है । उसमें ये दो अनुयोगद्वार होते हैं - प्रमाणानुगम और अल्पबहुत्व | प्रमाणानुगम ६८१. प्रमाणानुगम - पाँच ज्ञानावरणीयके असंख्यात लोक प्रमाण स्थितिबन्धाध्यवसान स्थान होते हैं । इसी प्रकार सभी प्रकृतियों के अनाहारकमार्गणा तक जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि अपगतवेदी और सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीवोंमें अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थिति अध्यवसानस्थान होते हैं । इस प्रकार प्रमाणानुगम समाप्त हुआ । अल्पबहुत्व ६८२. अल्पबहुत्व दो प्रकार का है - स्वस्थान अल्पबहुत्व और परस्थान अल्पबहुत्व | स्वस्थान अल्पबहुत्वका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकार है - ओघ और आदेश । ओवसे पाँच ज्ञानावरणीय अध्यवसानस्थान समान होते हैं । स्त्यानगृद्धित्रिकके स्थितिबन्धाध्यवसान स्थान सबसे स्तोक होते हैं। इनसे निद्रा और प्रचलाके स्थितिवन्धाध्यवसान स्थान विशेष अधिक होते हैं । इनसे चार दर्शनावरणके स्थितिबन्धाध्यवसान स्थान विशेष अधिक होते हैं । सातावेदनीयके स्थितिबन्धाध्यवसान स्थान सबसे स्तोक होते हैं । इनसे असातावेदनीयके स्थितिबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणं होते हैं । हास्य और रतिके स्थितिबन्धाध्यवसान स्थान सबसे स्तोक होते हैं । इनसे पुरुषवेद स्थितिबन्धध्यवसानस्थान विशेष अधिक होते हैं। इनसे स्त्रीबदके स्थितिबन्धा. व्यवसान स्थान असंख्यातगुणं होते हैं । इनसे नपुंसकवेदके स्थितिबन्धाध्यवसान स्थान असंख्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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