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महाबंधे द्विदिबंधाहियारे सहस्सारभंगो। सुक्काए ओघं । णवरि पामे विसेसो। सव्वत्थोवा० मणुसगदि. हिदिबं० । देवगदि० द्विदिवं० विसे० । अथवा देवगदि० बंध० थोवा० । मणुसगदि. द्विदिवं. असंखेज्जगुः । एवं सव्वणामाणं णेदव्वं । असण्णीसु मोहणीयं अपज्जत्तभंगो। चदु० आयु० तिरिक्खोघं । सेसाणं तिरिक्खोघं। एवं सत्थाणअप्पाबहुगं समत्तं
६६०. परत्थाणअप्पाबहुगं पगदं । दुविधो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण सव्वत्थोवाणि तिरिक्ख-मणुसायूर्ण द्विदिवंधज्झवसाणट्ठाणाणि । णिरयायुगस्स हिदिबंधझवसाणट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । देवायु० द्विदिबंध० विसेसाहियाणि । आहारसरीर० द्विदिव० असंखेज्जगु० । देवगदि० द्विदिवं. असंखेजगु० । हस्स-रदीणं द्विदिबं० विसेसा० । पुरिस० द्विदिवं० विसे० । जस०-उच्चा० द्विदिवं० विसे० । सादावे. ट्ठिदिवं० असंखेजगु० । मणुसगदि० हिदिबं० विसे० । इत्थिवे. द्विदिबं० विसेसा० । णिरयगदि. द्विदिबं. असंखेजगु० । णबुंस० द्विदिबं० विसे० । अरदि-सोग०-अजस० द्विदिवं० विसे० । तिरिक्खगदिणीचागो० द्विदिबं० विसेसा० । ओरालिय० द्विदिबं० विसे० । वेउन्विय० द्विदिवं० विसे। तेजा०-कम्म० द्विदिवं० विसे० । भय-दुगुं० द्विदिवं०
कि इनमें सहस्रारकल्पके समान भङ्ग है। शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें ओषके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि नामकर्ममें कुछ विशेषता जाननी चाहिये । मनुष्यगतिके स्थितिवन्धाध्यवसानस्थान सबसे स्तोक हैं। इनसे देवगतिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान विशेष अधिक हैं । अथवा देवगदिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान सबसे स्तोक हैं। इनसे मनुष्यगतिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं । इसीप्रकार सब नामकर्मकी प्रकृतियोंके विषयमें जानना चाहिये । असंजियोंमें मोहनीयकर्मका भङ्ग अपर्याप्तकोंके समान है। चारों आयुअोंका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है - तथा शेष प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है।
इस प्रकार स्वस्थान अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। ६६०. परस्थान अल्पबहुत्वका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे तिर्यञ्चायु और मनुष्यायु के स्थितिबन्धाध्यवसान स्थान सबसे स्तोक हैं । इनसे नरकायुके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं। इनसे देवायुके स्थितिबन्धाध्यवसान स्थान विशेष अधिक हैं। इनसे आहारकशरीरके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं । इनसे देवगतिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं। इनसे हास्य और रतिके स्थितिवन्धाध्यवसान स्थान विशेष अधिक है। इनसे पुरुषवेदके स्थितिबन्धाध्यवसान स्थान विशेष अधिक हैं। इनसे यशःकीर्ति और उच्चगोत्रके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान विशेष अधिक हैं । इनसे सातावेदनीयके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगणे हैं। इनसे मनुष्यगतिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान विशेष अधिक हैं । इनसे स्त्रीवेदके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान विशेष अधिक हैं। इनसे नरकगतिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगणे हैं। इनसे नपुंसकवेदके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान विशेष अधिक हैं। इनसे अरति, शोक और अयशःकीर्तिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान विशेष अधिक है। इनसे तिर्यञ्चगति और नीचगोत्रके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान विशेष अधिक हैं। इनसे औदारिकशरीरके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान विशेष अधिक हैं। इनसे वैक्रियिकशरीरके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान विशेष अधिक हैं। इनसे तैजस और कार्मणशरीरके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान विशेष अधिक हैं। इनसे
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