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महाबंधे हिदिबंधाहियारे
पदणिक्खेवो ८३२. पदणिक्खेवे तिण्णि अणियोगद्दाराणि । तत्थ इमाणि समुकित्तणा सामित्तं अप्पाबहुगे त्ति ।
समुक्कित्तणा ८३३. समुक्तित्तणाए दुविधं-जहण्णयं उक्स्स यं च। उकस्सए पगदं । दुवि०-ओषे० आदे० । ओघे० सव्वाणं पगदीणं अत्थि उक्कस्सिया वड्डी उक्कस्सिया हाणी उक्कस्सयमवट्ठाणं । एवं अणाहारग त्ति ।
८३४. जहण्णए पगदं। दुवि०-ओषे० आदे० । ओषे० सव्वाणं पगदीणं अस्थि जहणिया वड्डी जहणिया हाणी जहण्णयमवट्ठाणं । एवं याव अणाहारग ति ।
एवं समुक्त्तिणा समत्ता।
सामित्तं ८३५. सामित्तं दुविधं-जहण्णयं उकस्सयं च । उकस्सए पगदं। दुवि०-ओघे० आदे। ओघे० पंचणा०-णवदंसणा०-असादा०-मिच्छ०-सोलसक०-णवंस०-अरदि-सोग-भय-दुगुं०तिरिक्खगदि-एइंदि०-ओरालि०-तेजा०-क०-हुंडसं०-वण्ण०४-तिरिक्खाणु०-अगु०४आदाउजो०-थावर-बादर पजत्त-पत्ते-अथिरादिपंच०-णिमि०-णीचा०-पंचंत उक्क०वड्डी कस्स होदि? यो चदुट्ठाणिययवमज्झस्स उवरि अंतोकोडाकोड़ी द्विदिबंधमाणो तप्पाओग्गउक्कस्ससंकिलेसेण उक्कस्सयं दाहं गदो तत्तो उक्कस्सयं द्विदिबंधो तस्स उक्कस्सिया वड्डी ।
पदनिक्षेप ___८३२. पदनिक्षेपमें तीन अनुयोग द्वार हैं जो ये हैं-समुत्कीर्तना, स्वामित्व और अल्पबहुत्व।
समुत्कीतना ८३३. समुत्कीर्तना दो प्रकारका है-जधन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट वृद्धि, उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थान है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये।
८३४. जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धि, जघन्य हानि और जघन्य अवस्थान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
इस प्रकार समुत्कीर्तना समाप्त हुई।
स्वामित्व ८३५. स्वामित्व दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तिर्यश्चगति, एकेन्द्रियजाति. औदारिक शरीर. तैजस शरीर. कार्मण शरीर, हण्डसंस्थान. वर्णचतुष्क. तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी. अगुरुलघु चतुष्क, पातप, उद्योत, स्थावर, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, अस्थिर आदि पाँच, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो चतुःस्थानिक यवमध्यके ऊपर अन्तःकोडाकोडी स्थितिका बन्ध करनेवाला तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेशसे उत्कृष्ट दाहको प्राप्त
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