Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 412
________________ पदणिक्खेवे सामित्तं ३६६ · अण्ण• जो समयूर्ण उकस्सट्ठिदिं बंधमाणो पुण्णाए हिदिबंधगद्धाए उक्कस्सए संकिलेसं गदो तदो उकस्यं द्विदिं पबद्धो तस्स जह० वड्डी । जहण्णिया हाणी कस्स० ? यो समजुत्तरं सव्वजह० द्विदि० पुण्णाए द्विदिबंधगद्धाए उक्कस्सयं विसोधिं गदो तदो दाह० हिदि० तस्स जहण्णिया हाणी । एकदरत्थमवट्ठाणं । सादावे० पुरिस० - हस्स - रदि-दोगदि - समचदु० - वञ्जरिस :- दोआणु ० - पसत्थ० - थिरादिछ० - उच्चा० जह० वड्डी कस्स १ यो समयूणं तप्पा ओग्गउकस्सयं द्विदिं बंध० तप्पा ओग्गउक० संकिले० तदो उक्क० द्विदिबंध० तस्स जहण्णिया वड्डी । जह० हाणी कस्स० १ यो समजुत्तरं तप्पा ओग्गजह० माणो उकस्सं विसोधिं गदो तदो सव्व जह० तस्स जह० हाणी । एकदरत्थमवट्ठाणं । असादा० - बुंस० - अरदि - सोग - णिरयगदि - एइंदि० - हुंड० - असंपत्त० णिरयाणु० - अप्पसत्थवि० - आदाव - थावर - अथिरादिछ० जह० वड्डी कस्स० १ यो समयूर्ण उकस्सयं द्विदि बंध० पुण्णाए द्विदि बंध० उक्कस्सियं संकिलेसं गदो तदो उक्क० हिदि० तस्स जह० वड्डी । जह० हाणी० कस्स० यो तप्पा ओग्गजह० समजुत्तरं द्विदि० तप्पाओग्ग विसोधिं गदो तदो जह० द्विदि० तस्स जह० हाणी । एगदरत्थमवट्ठाणं । इत्थवे ०तिण्णजादि - चदुसंठा० - चदुसंघ० - सुहुम- अपज्ज० - साधार० जह० वड्डी कस्स ! यो समयुणं तप्पा ओग्गउक्क० द्विदि०माणो पुष्णाए ट्ठदिबंधगद्धाए तप्पा ओग्गउक० लघुचतुष्क, उद्योत, त्रस चतुष्क, निर्माण, नीचगोत्र, और पाँच अन्तरायकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव उत्कृष्ट स्थितिबन्ध काल पूर्ण हो जानेपर उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करता है, वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है । जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? जो एक समय अधिक सबसे जघन्य स्थितिबन्ध करनेवाला स्थितिबन्धके कालके पूर्ण होनेपर उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त होकर जघन्य स्थितिबन्ध करता है, वह जघन्य हानिका स्वामी है तथा इनमेंसे किसी एकके जघन्य अवस्थान होता है । सातावेदनीय, पुरुषवेद, हास्य, रति, दो गति, समचतुरस्र संस्थान, वज्रऋपभनाराच संहनन, दो आनुपूर्वी, प्रशस्त विहायोगति, स्थिर आदि छह और उच्चगोत्रकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो एक समय कम तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करनेवाला जीव तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करता है, वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है । जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? जो एक समय अधिक तत्प्रायोग्य जघन्य स्थितिबन्ध करनेवाला जीव उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त होकर सबसे जघन्य स्थितिबन्ध करता है, वह जघन्य हानिका स्वामी है तथा इनमेंसे किसी एकके जघन्य अवस्थान होता है । असातावेदनीय, नपुंसकवेद, अरति, शोक, नरकगति, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, असम्प्रप्तासृपाटिका संहनन, नरकगत्यानुपूर्वी, अप्रशस्तविहायोगति, तप, स्थावर और अस्थिर आदि छहकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव स्थितिबन्ध कालके पूर्ण हो जानेपर उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करता है, वह जन्य वृद्धिका स्वामी है । जघन्य हानिका स्वामी कौन है? जो एक समय अधिक तत्प्रायोग्य जघन्य स्थितिबन्ध करनेवाला जीव तत्प्रायोग्य विशुद्धिको प्राप्त होकर जघन्य स्थितिबन्ध करता है, वह जघन्य हानिका स्वामी है। तथा इनमेंसे किसी एकके जघन्य अवस्थान होता है । वेद, तीन जाति, चार संस्थान, चार संहनन, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो एक समय कम तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करनेवाला जीव स्थितिबन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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