Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 429
________________ ४१६ महाबँधे हिदिबंधाहियारे कस्स० १ अण्ण० । अवत्तव्वं ओघं । एवं पम्माए । सुक्काए खवगपगदीणं असंखेज्जगुणवड्डि- हाणि - अवत्तव्यं ओघं । साणं तेउभंगो । ८७७. सासणे धुविगाणं तिण्णिवड्डि-हाणि-अवट्ठि० कस्स ० १ अण्ण० । सेसाणं तिण्णवड्डि- हाणि - अवट्टि ·हु० - अवत्त० विभंगभंगो । सम्मामि० धुविगाणं तिण्णिवड्डि-हाणि - अवट्टि ० कस्स ० १ अण्ण० । सेसाणं तिष्णिवड्डि- हाणि अवट्ठि० कस्स ० १ अण्ण० । अवत्त ० कस्स ० १ बंधगस्स पढमसम० । ८७८. सण्णी पंचिदियभंगो । णवरि सण्णि त्ति भाणिदव्वं । असण्णीसु धुविगाणं दोवड्डि- हाणि - अट्ठि०. कस्स ० १ अण्ण० । सेसाणं दोवड्डि- हाणि अवट्ठिदं कस्स ० १ अण्ण० । अवत्वं कस्स० ? परिय० । मणुसगदिदुग - वेडव्विगछ० - उच्चागोद वजित्ता सेसाणंसंजगु० कस्स ० १ अण्ण० एइंदि० विगलिंदियस्स वा विगलिंदिएस अस णिपंचिदिएस उवव० पढमसम० । संर्खेजगुणहाणी कस्स० ? अण्ण० विगलिंदि० असणिपंचिदि० एदिए वा विगलिदिएसु उवव० पढम० । णवरि एइंदि० आदाव थावर- सुहुम-साधार० वड्डी थि । एवं सामित्तं समत्तं शुक्लेश्यावाले जीवों में क्षपक प्रकृतियोंकी असंख्यात गुणवृद्धि, असंख्यात गुणहानि और अवक्तव्यबन्धका स्वामी ओधके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग पीतलेश्यावाले जीवों के समान है। ८७७. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है । शेष प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्यबन्धका स्वामी विभङ्गज्ञानी जीवोंके समान है । सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है। शेष प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है । अवक्तव्यबन्धका स्वामी कौन है ? प्रथम समयमें बन्ध करनेवाला जीव स्वामी है । ७. संज़ी जीवोंमें पञ्चेन्द्रियोंके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि संज्ञी ऐसा कहना चाहिए। असंज्ञी जीवों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी दो वृद्धि, दो हानि और अवस्थित बन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है। शेष प्रकृतियोंकी दो वृद्धि, दो हानि और अवस्थित बन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव स्वामी है । अवक्तव्य बन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान प्रथम समवर्ती जीव स्वामी है । मनुष्यगतिद्विक, वैक्रियिक छह और उच्चगोत्रको छोड़कर शेष प्रकृतियों की संख्यातगुणवृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीव मरकर जब विकलेन्द्रियों और असंज्ञी पञ्चेन्द्रियोंमें उत्पन्न होता है, तो ऐसा जीव पहले समय में स्वामी है । संख्यातगुणहानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर विकलेन्द्रिय और असंज्ञी पचेन्द्रिय जीव जब मरकर एकेन्द्रियों और विकलेन्द्रियों में उत्पन्न होता है, तब उत्पन्न होनेके प्रथम समय में वह स्वामी है । इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रियों में तप, स्थावर, सूक्ष्म और साधारण प्रकृति की वृद्धि नहीं है । इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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