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फो सव्वलो० । चदुआयु० - वेड व्विय छ० मणुसगदि - तिण्णिजादि- मणुसाणु ० - आदाव० उच्चा० तिरिक्खोघं । पंचिंदिय-तस० दोवड्डि-हाणी लोग • असंखे बारहचो० | सेसं सव्वलो० । आहारदुगं तित्थय० त्तभंगो । उज्जोव० दोवड्डि-हाणी तेरहचो । सेसं सादभंगो । एवं जसगित्ति - बादरणामं पि ।
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४८. को कसा पंचणा० - चदुदंस० - चदुसंज० - पंचंत० ऍकवड्डि- हाणि - अवट्टि० सव्वलो० | दोवड्डि-हाणी अट्ठचो६० सव्वलो० । असंखेज्जगुणवड्डि-हाणी खेत्त० । सेसं ओघं | माणे पंचणा० - चदुदंस ० - तिष्णिसंज ० - पंचंत ० कोधभंगो । सेसं ओघं । मायाए पंचणा० - चदुदंसणा ० - दोसंज० - पंचंत० कोधभंगो । सेसं ओघं । लोभे मूलोघं ।
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९४९. मदि० - सुद० खवगपगदीणं असंज्जगुणवड्डि- हाणि अवतव्ववज्जाणि सेसाणि [य सव्वपदा] ओघं । णवरि देवगदि देवाणुपु० अवत्त ० त ० | सेसपदा पंचचौ६० | ओरालिय० अवत्त० ऍक्कारह० । वेउव्वि ० - वेउच्चि ० अंगो० सव्वपदा एक्कारहचो० । अवत्त० खेत० ।
राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेष पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोकक्षेत्रका स्पर्शन किया है। चार आयु, वैक्रयिक छह, मनुष्यगति, तीन जाति, मनुष्यानुपूर्वी, आतप और उच्चगोत्रका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चों के समान है । पञ्चेन्द्रियजाति और त्रसकी दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और कुछ कम बारहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदों के बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । आहारकद्विक और तीर्थंकर प्रकृतिका भङ्ग क्षेत्र के समान है । उद्योतकी दो वृद्धि और हानिके बन्धक जीवोंने कुछ कम तेरहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेष पदोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है । इसी प्रकार यशःकीर्ति और बादर नामकर्मकी मुख्यता से स्पर्शन जानना चाहिये ।
६४८. क्रोधकषायवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी एक वृद्धि, एक हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यात गुणहानिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान हैं । शेष भङ्ग प्रोघके समान है । मान कषायवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानांवरण, चार दर्शना वरण, तीन संज्वलन और पाँच अन्तरायके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्रोधकषायवाले जीवोंके समान है । शेष भङ्ग ओघ के समान है । मायाकषायवाले जीवों में पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, दो संज्वलन और पाँच अन्तरायके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्रोधकषायवाले जीवोंके समान है । शेष भङ्ग श्रोधके समान है । लोभकषायवाले जीवोंमें अपनी सब प्रकृतियोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग मूल के समान है ।
६४६. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें क्षपक प्रकृतियोंकी असंख्यात गुणवृद्धि, असंख्यात गुणहानि और वक्तव्य पदको छोड़कर तथा शेष सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि देवगति और देवगत्यानुपूर्वीके अवक्तव्यपदके बन्धक का भङ्ग क्षेत्र के समान है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँचबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । औदारिकशरीर के अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम ग्यारहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिकआङ्गोपाङ्गके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम ग्यारहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है ।
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