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बंधे अपबहुअं
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देवगदि०४ तिष्णिवड्डि-हाणि अवट्ठि ० पंचचोस० । अवत्त० खेत० । ओरालि०ओरालि • अंगो० अवत्त० पंचचों० | सेसपदा अट्ठचों० । सेसाणं सव्वपगदीणं सहस्सारभंगो ।
• ६५६. सुकाए अपच्चक्खाणा ०४ - मणुसग ० - ओरालि ०-ओरालि ०-अंगो०
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अप्पाबहुअं
६५७.... पर०- उस्सा०-पसत्थ० -तस०४ - सुभग- सुस्सर - आदें० उच्चा० सव्वत्थोवा संखज्जगुणवड्डि-हाणी दो वि तुल्ला । अवत्त० संखेज्जगुणा । सेसपदा धुवभंगो । णस० - तिण्णिगदि - चदुजादि - ओरालि ० - पंचसंठा ० - ओरालि० अंगो० - छस्संघ० - तिण्णिआणु ० - आदाउज्जो ०० - अप्पसत्थ० थावर० ४ - दूर्भाग- दुस्सर - अणादे० सव्वत्थोवा संखेज्जगुणवड्डि ०-हाणी दो वि तुल्ला । अवतः असंखेज्जगु० | संखेज्जभागवड्डि-हाणी दो वि० संखेज्ज० । सेसाणं धुवभंगो । चदुआयु० ओघं ।
६५८, पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तगेसु धुविगाणं सव्वत्थोवा संखेज्जगुणवड्डि-हाणी | संखज्जभागवड्डि-हाणी दो वि० असंखेज्जगु० । असंखेज्जभागवड्डि-हाणी दो वि० कुछ कम पाँचबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शने क्रिया है । देवगतिचतुष्ककी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँचवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्रके समान है । औदारिकशरीर और औदारिकाङ्गोपाङ्गके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँचबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदों के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष सब प्रकृतियोंका भङ्ग सहस्रार कल्पके समान है ।
६५६. शुक्लले श्यावाले जीवोंमें अप्रत्याख्यानावरण चार, मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिकाङ्गोपाङ्ग...
अल्पबहुत्व
६५७................परघात, उच्छास, प्रशस्त विहायोगति, त्रस चतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रकी संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुण- हानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर सबसे स्तोक हैं । इनसे वक्तव्य पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। शेष पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग ध्रुव बन्धवाली प्रकृतियोंके समान है। नपुंसकवेद, तीन गति, चार जाति, औदारिक शरीर, पाँच संस्थान, औदारिकाङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, तीन आनुपूर्वी, श्रातप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर चतुष्क, दुभंग, दुस्वर और अनादेयकी संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुण हानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर सबसे स्तोक हैं । इनसे वक्तव्य पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यात भागवृद्धि और संख्यात भागहानिके वन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं। शेष पदोंका भङ्ग ध्रुव बन्धवाली प्रकृतियोंके समान है । चार आयुका भङ्ग
के समान है ।
६५. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्तकों में संख्यात गुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर सबसे स्तोक हैं । इनसे संख्यात भागवृद्धि, और संख्यात भागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भाग
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