Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 487
________________ ४७४ महाबंधे हिदिबंधाहियारे संखेन्ज । अवट्ठि० असंखेंजगु० । सादादीणं परियत्तमाणियाणं पंचिंदियतिरिक्खभंगो । ६५६. मणुसेसु पंचणा०-चदुदंसणा०-चदुसंज०-पंचंत० सव्वत्थोवा अवत्त । असंखेज्जगुणवड्डी संखेज्जगु० । असंखेंज्जगुणहाणी संखेंज्जगु० । संखेज्जगुणवाड्वि-हाणी दो वि० असंखेंज्जगु० । संवेज्जभागवड्डि-हाणी दो वि० संग्वेज्जगु० । असंखेन्जभागवड्डि-हाणी दो वि० संखेज्जगु० | अवढि० असंखेज्जगु०। पंचदंस०-मिच्छत्त०-बारसक०भय दु० ओरालि०-तेजइगादिणव० सव्वत्थोवा अवत० । संखेजगुणवड्डि-हाणी दो वि. असं०गु० । सेसपदा णाणावरणभंगो। सादावे-पुरिस०-जसगि०-उच्चा० सव्वत्थो० असंखेज्जगुणवड्डी । असंखेज्जगुणहाणी संखेंजगु०। संखेंजगुणवडि-हाणी दो वि सरिसाणि असंखेंजगुणाणि । अवत्त० संखेज्जगु० । संखेंज्जभागवडि-हाणी दो वि० संखेंज । सेसपदा णाणावरणभंगो । वेउब्बियछक्क आहारदुगं ओघं आहारसरीरभंगो। सेसाणं असादादीणं सबपगदीणं णिरयभंगो । णवरि तित्थय०...सव्वत्थो० संखेज्जगुणं कादव्वं । मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु तं चेव । णवरि संग्वेज कादव्वं । मणुसअपजत्तगेसु धुविगाणं सव्वत्थो० संखेज्जगुणवाड्डि-हाणी दो वि० । संखेज्जभागवड्डि-हाणी दो वि हानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। साता आदि परिवर्तनमान प्रकृतियोंका भङ्ग पश्चेन्द्रियतिर्यञ्चोंके समान है। ६५६. मनुष्योंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायके श्रावक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे असंख्यातगुणवृद्धिके बन्धक जीव संख्यातगुग्ग हैं। इनसे असंख्यातगुण हानिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धि ओर संख्या मागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यात. भागवृद्धि और असंख्यात भागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं। इनसे अरस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। पाँच दर्शनावरण, मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिकशरीर और तैजसशरीर आदि नौके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगणे हैं। शेष पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । सातावेदनीय, पुरुषवेद, यश:. कीर्ति, और उच्चगोत्रकी असंख्यातगुणवृद्धिके वन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे असंख्यागुण हानिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यात गुणहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं। इनले अवक्तव्य पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं। शेष पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। वैक्रियिक छह और आहारकद्विकका भङ्ग अोधमें कहे गये आहारकशरीरके समान है। शेष असाता आदि सब प्रकृतियोंका भङ्ग नारकियों के समान हैं। इतनी विशेषता है कि तीर्थङ्करप्रकृति..... सबसे स्तोक हैं। इसके स्थानमें संख्यातगुणा करना चाहिये । मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें वही भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि यहाँ असंख्यातगुरणेके स्थानमें संख्यातगुणा करना चाहिये। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें ध्रुव बन्धवाली प्रकृतियोंकी संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगणहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर सबसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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