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महाबंधे ढिदिवधाहियारे असंजदे धुवियाणं मदिभंगो। थीणगिद्धि०३-अणंताणुवंधि०४ अवत्त० अट्टचों । सेसं ओघं।
५३. किण्ण-णील-काऊणं धुविगाणं ऍक्वाड्डि-हाणि-अवढि० सव्वलो० । बेवड्डि. हाणी लोग० असंखे सव्वलो० । णिरयगदि-वेउवि० [वेउन्धि०] अंगो०-णिरयाणु० अवत्त० खेत्त० । सेसपदा छ-चत्तारि-बेचोदेस। णिरय-देवायु०-देवगदि-देवाणुपु०तित्थय० खेतः । सेसं तिरिक्खोघं। णवरि इत्थि-पुरिस-पंचिंदि०-पंचसंठा०-ओरालि.. अंगो०-छस्संघ०-उज्जो०-दोविहा..तस-सुभग-दोसर-आदेज्ज० दोवड्डि-हाणी० छ-चत्तारिबेचौदस । मिच्छत्त० अवत्त० पंच-चत्तारि-बेचोदस० ।
१५४. तेऊए मिच्छत्त० सव्वपदा अट्ठ-णवचों । एवं उज्जो० । अपञ्चक्खाणा०४ अवत्त० दिवड्डचोदेस० । एवं ओरालि०। देवगदि०४ सव्वपदा दिवड्वचोदेस० । अवत्त० खेत्त० । सेसपदा सेसाणं पगदीणं सोधम्मभंगो।
१५५. पम्माए अपञ्चक्खाणा०४ अवत्त० पंचचोद्द० । सेसपदा अट्टचोद० । स्त्यानगृद्धि तीन और अनन्तानुबन्धी चारके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंका तथा शेष प्रकृतियों के सब पदोंका भङ्ग ओघके समान है।
६५३. कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावाले जीवोंमें ध्रव बन्धवाली प्रकृतियोंकी एक वृद्धि, एक हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि
और दो हानिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नरकगति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिक आङ्गोपाङ्ग और नरकगत्यानुपूर्वी के अवक्तव्य पदके वन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने क्रमसे कुछ कम छहबटे चौदह राजु, कुछ कम चारबटे चौदह राजू और कुछ कम दोबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नरकायु, देवायु, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी और तीर्थङ्कर प्रकृतिके सब पदोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद, पुरुष वेद, पञ्चेन्द्रिय जाति, पाँच संस्थान, औदारिकाङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, उद्योत, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर और आदेयकी दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंने कुछ कम छबटे चौदह राजू, कुछ कम चार बटे चौदह राजू और कुछ कम दोबटे चौदह राजु क्षेत्रका स्
स्पर्शन किया है। मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने क्रमसे कुछ कम पाँचबटे चौदह राज, कुछ कम चारवटे चौदह राजू और कुछ कम दोबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
६५४. पीतलेश्यावाले जीवोंमें मिथ्यात्वके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राज और कुछ कम नौवटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार उद्योतकी मुख्यतासे स्पर्शन जानना चाहिये। अप्रत्याख्यानावरण चारके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़बटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसीप्रकार औदारिकशरीरकी मुख्यतासे स्पर्श न जानना चाहिये । देवगति चतुष्कके सब पदोंके वन्धक जीबोंने कुछ कम डेढ़बटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। प्रवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेप पदोंके बन्धक जीवोंका तथा शेष प्रकृतियों के सब पदों के बन्धक जीवोंका स्पर्शन सौधर्म कल्पके समान है।
६५५. पद्मलेश्यावाले जीवोंमें अप्रत्याख्यानावरण चारक अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने
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