Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 492
________________ धे पाहु ४७६ ८ ६६६, इत्थिवे० पंचणा०-चदुदंस० चदुसंज० - पंचंत० सव्वत्थो० असंखेज्जगुणबड्डी | असंखेज्जगुणहाणी संखेज्जगु० । संखेज्जगुणवड्डि-हाणी दो वि० तु० असं० गु० । सेसपदा पंचिदियपज्जत्तभंगो । पंचदंसणा ० - मिच्छत्त० - बारसक० - भय०० - दुगुं०-तेजइगादिणव० पंचिंदियपज्जतभंगो । सादावे ० - पुरिस० - जसगि ० उच्चा० पंचिदियपज्जत्तभंगो | असादा० - छण्णोकसा० - तिष्णिगदि - दोजादि-ओरालि ० - वेउब्वि० - छस्संघा - दोअंगो०छस्संघ - तिष्णिआणु० - आदाउज्जो ० - दोविहा० - तस - थावरादिपंचयुगल - अजस ०णीचा० सम्वत्थो० संज्जगुणवड्डि-हाणी दो वि० तु० । अवत्त ० ज० | संखेज्जभागवड्डि-हाणी दो वि० तु ० संखेज्ज० । असंखेज्जभागवड्ढि -हाणी ० दो वि० तु० संखेज्जगु० । अवट्ठि ० असंखेज्जगु० । चदुआयु० ओघं । णिरयगदि - तिण्णिजादिगिरयाणु० - सुहुम अपज्ज० -साधार० सव्वत्थो० संखेज्जगुणवड्डि-हाणी दो वि० । अयत्त० असंखज्जगु० | संखेज्जभागवड्डि-हाणी दो वि० संखेज्जगु० । असंखज्जभागवड्ढि -हाणी दो वि० संखेज्जगु० । अवट्ठि० असंखेज्जगु० । आहारदुग - तित्थय० मणुसि० भंगो। पर०उस्सा० - बादर - पज्जत - पत्ते० सव्वत्थोवा अवत्त० । संखेज्जगुणवड्डि-हाणी दो वि० संखेज्ज० ० | संखेज्जभागवड्डि-हाणी दो वि० संखज्जगु० । असंखेज्जभागवड्डि-हाणी I ६६६. स्त्रीवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी संख्यातगुणवृद्धि के बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे असंख्यातगुणहानिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं। शेष पदोंका भङ्ग पञ्चेन्द्रियपर्याप्त जीवोंके समान है । पाँच दर्शनावरण, मिध्यात्व, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा और तैजसशरीर आदि नौ का भङ्ग पञ्चेन्द्रियपर्याप्त जीवोंके समान है । सातावेदनीय, पुरुपवेद, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका भङ्ग पञ्चेन्द्रियपर्याप्त जीवोंके समान है । असातावेदनीय, छह नोकषाय, तीन गति, दो जाति, औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर, छह संस्थान, दो आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, तीन आनुपूर्वी, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, त्रस और स्थावर आदि पाँच युगल, अयशःकीर्ति और नीचगोत्रकी संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर सबसे स्तीक हैं । इनसे वक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यात भागवृद्धि और संख्यातभागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। चारों आयुओंका भङ्ग श्रोधके समान है । नरकगति, तीन जाति, नरकगत्यानुपूर्वी, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणकी संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर सबसे स्तोक हैं । इनसे अवक्तव्यपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। आहारकद्विक और तीर्थंकर प्रकृतिका भङ्ग मनुष्यनियोंके समान है। परघात, उच्छ्रास, बादर, पर्याप्त और प्रत्येक वक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्या - गुणानि बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यात भागवृद्धि और संख्यातभागहानि के बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यात भागवृद्धि और For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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