Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

Previous | Next

Page 488
________________ ४७५ विंधे अप्पाबहुअ तु० संखेज्ज० । असंखेज ० वड्डि-हाणी दो वि तु० संखेज्ज० । अवद्वि० असंखेज्जगु ० । साणं पगदीणं मणुसोघभंगो । देवाणं णिरयभंगो । णवरि विसेसो णादव्वो । l ६६०. सव्वएइंदिय-पंचकायाणं धुविगाणं सव्वत्थोवा असंखेज्जभागवड्डि-हाणी दो वि० । अवट्टि • असंखेज्ज० । सेसाणं परियत्तमाणियाणं पगदीणं सव्वत्थो० अवत्त० । असंखेज्जभागवड्डि-हाणी दो वि० संखेज्ज० । अवट्टि • असंखें । दो आयु० ओघं । ० ६१. सम्वविगलिदिएसु धुविगाणं सव्वत्थोवा संखेज भागवड्डि-हाणी दो वि तु० । असंखे भागवडि-हाणी दो वि तु० संखेजगु० । अवट्ठि ० असंखेज्जगु० । सेसाणं सव्वत्थोवा अवत्त० | संखेजभागवड्डि-हाणी दो वि संखेन्ज गु० । असंखेज्जभागवड्डिहाणी दो वि तु० संखेज० । अवट्ठि० असंखेज गु० । आयु • मणुसअपज्जत्तभंगो । ० ६२. पंचिदिए पंचणा० चदुदंसणा० चदुसंज • पंचंत० सव्वत्थो० अवत्त ० | असंखेज्जगुणवड्डी संखेज्जगु० । असंखेज्जगुणहाणी संखेज्जगु० | संखेज्जगुणवड्डि-हाणी दो वि० असंखेअ ० | संखेज्जभागवड्डि-हाणी दो वि० असं ० गु० । असंखेज भागवड्डि-हाणी स्तोक हैं । इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिके वन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियों का भङ्ग सामान्य मनुष्यों के समान है । देवोंका भङ्ग नारकियों के समान है । इतनी विशेषता है कि यहाँ जो विशेष हो वह जान लेना चाहिये । ६६०. सब एकेन्द्रिय और पाँच स्थावरकायिक जीवों में असंख्यात भागवृद्धि और असंख्याभागहानि बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर सबसे स्तोक हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव श्रसंख्यातगुणे हैं। शेष परिवर्तमान प्रकृतियों के अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । दो आयुओंका भङ्ग ओके समान है । ६६१. सब विकलेन्द्रियों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिके बन्धक जीव तुल्य होकर सबसे स्तोक हैं । इनसे असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यातभाग हानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं । इसे अवस्थित पदके वन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष सब प्रकृतियोंके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानि इन दोनों ही पदोंके बन्धक जीव तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानि इन दोनों ही पदोंके बन्धक जीव तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। आयुकर्मका भङ्ग मनुष्य अपर्याप्तकोंके समान हैं । ६६२. पचेन्द्रियोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायक अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सब स्तोक हैं। इनसे असंख्यात गुणवृद्धि के बन्धक जीव संख्यातगु हैं । इनसे असंख्यातगुणहानिके वन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानि दोनों ही पदोंके बन्धक जीव तुल्य होकर असंख्यातगुण हैं । इनसे संख्यात भागवृद्धि और संख्या भागानि दोनों ही पदोंक बन्धक जीव तुल्य होकर असंख्यातगुण हैं । इनसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510