Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 489
________________ ४७६ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे दो वि० संखेंजगु० । अवढि० असंखेंज। पंचदंसणा०-मिच्छत्त०-बारसक०-भय-दु०तेजइगादिणव० सव्वत्थो० अवत्त । संखेंजगुणवड्डि-हाणी दो वि० असंखेंजगु० । संखेंजमागवडि-हाणी दो वि० असंखेज्जगु० । असंखेंजभागवधि-हाणी दो वि० संखेंजगु०। अवढि० असंखेंज० । सादावे-पुरिस० जसगि०-उच्चागो० सव्वत्थोवा असंखेंजगुणवड्डी । असंखेंजगुणहाणी संखेज्जगु० । संखेज्जगुणवड्डि-हाणी दो वि० असंखेंज्ज० । अवत्त. असंखेज्जगु० । संखेजभागवड्वि-हाणी दो वि० असंखेज्जगु० । असंखेजभागवाड्वि-हाणी संखेंजगु० । अवट्ठि. असंखेजगु० । असादावे०-छण्णोक०-दोगदि-पंचजादि-'ओरालिय०-छस्संठा-ओरालि०अंगो०-छस्संघ०-दोआणु०-आदा-उज्जो०-दोविहा०-परउस्सास-तस-थावरादिणवयुगल-अजस०-णीचा० सव्वत्थो० संखेंजगुणवड्डि-हाणी दो वि० । अवत्त० असंखेज्जगु० । सेसं णिहाए भंगो। चदुआयु० णिरय-देवगदि-वेउवि०. वेउन्वि०अंगो०-दोआणु आहारदुग-तित्थयरं च ओघं । ९६३. पंचिंदियपजत्तगे पंचणा०-चदुदंस०-चदुसंज० पंचंत० सम्बत्थो० अवत्त० । असंखेंजगुणवड्डी संखेंजगु० । असंखेज्जगुणहाणी संखेज्जगु० । संखेज्जगुणवड्डि-हाणो दो असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानि इन दोनों ही पदोंक बन्धक जीव तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। पाँच दर्शनावरण, मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा और तैजसशरीर आदि नौके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानि इन दोनों ही पदोंके बन्धक जीव तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानि इन दोनों ही पदोंके बन्धक जीव तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानि इन दोनों ही पदोंके बन्धक जीव तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। सातावेदनीय, पुरुषवेद, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रकी असंख्यातगुणवृद्धिके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे असंख्यातगुणहानिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं। इनसे प्रवक्तव्य पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभाग हानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। असातावेदनीय, छह नोकषाय, दो गति, पाँच जाति, औदारिकशरीर, छह संस्थान, औदारिकाङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, परघात, उच्छ्रास, प्रस, स्थावर आदि नौ युगल, अयश कीर्ति और नीचगोत्रकी संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिके बन्धक जीव दोंनों ही तुल्य होकर सबसे स्तोक हैं। इससे अवक्तव्य पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष पदोंका भङ्ग निद्राके समान है। चार आयु, नरकगति, देवगति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिक आङ्गोपाङ्ग, दो आनुपूर्वी, आहारकद्विक और तीर्थङ्करप्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। ६६३. पश्चेन्द्रियपर्याप्त जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे असंख्यात गुणवृद्धिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यात गुणहानिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धि १ मूलप्रतौ जादि संखेजगु० ओरा०इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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