Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 484
________________ बंधे फो ४७१ 91 ५१. आमि० - सुद० - ओधि० पंचणा० - चदुदंस ० चदुसंज० - पुरिस० - सादा० जसगि० - उच्चा० - पंचंत० तिण्णिवड्डि- हाणि अवद्वि० अट्ठचोद० । असंखेज्जगुणवड्डि-हाणि-अवत्त • खेत्त० । णवरि सादावे ० - जसगि० अवत्त० अट्ठचोद० । णिद्दा- पचला-पच्चक्खाणा ०४-भय- दुर्गु० - पंचिंदि० - तेजा ० क ० - समचदु० - वण्ण०४- अगु०४ - पसत्थ०-तस०४सुभग- सुस्सर आदैज्ज० - णिमि० - तित्थय० तिण्णिवड्डि- हाणि-अवट्टि० अट्ठचों० । अवत्त ० खेत • ० । अपच्चक्खाणा ०४ - मणुसगदिपंच० तिण्णिवड्डि-हाणि अवट्ठि ० अट्ठचों० । अवत्त ० छच्चोद्द ० । असादादिदस- [अपज्ज०] सव्त्रपदा अट्ठचोद | मणुसायु० दोपदा अट्ठचोद ० । देवायु- आहारदुगं खेत्त । देवगदि०४ सव्वपदा छच्चो० । अवत्त० खेत० । एवं अधिदंस ० - सम्मादि ० खइग० वेदगस ० -उवसम० । णवरि खड़गे उवसमे च अपच्चक्खाणा ०४ - मणुसगदिपंचग० अवत्त० खेत० । देवगदि०४ सव्वपदा खेत० । ० ९५२. संजदासंजदे देवायु० - तित्थय० सव्वपदा खेत्त० । सेसाणं सव्वपदा छच्चो६० । ६५१. आभिनिवोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन, पुरुषवेद, सातावेदनीय, यशः कीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्र के समान है । इतनी विशेषता है कि साता वेदनीय और यशःकीर्तिके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । निद्रा, प्रचला, प्रत्याख्यानावरण चार, भय, जुगुप्सा, पश्चेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण और तीर्थंकरकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अप्रत्याख्यानावरण चार और मनुष्यगतिपञ्चककी तीन वृद्धि, तीन हानि, और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम छहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । असातावेदनीय आदि दस और अपर्याप्त सब पदों के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । मनुष्यायुके दो पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । देवायु और आहारकद्विकके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। देवगतिचतुष्कके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम छहबटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । इसीप्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि, वेदक सम्यग्दृष्टि, और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेपता है कि क्षायिकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें अप्रत्याख्यानावरण चार और मनुष्यगतिपञ्चकके वक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। तथा देवगतिचतुष्कके सब पदों के बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । 1 ६५२. संयतासंयत जीवोंमें देवायु और तीर्थङ्करके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम छहवढे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । असंयतों में ध्रुव बन्धवाली प्रकृतियोंका भङ्ग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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