Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 477
________________ ४६४ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे हाणि-अवत्त० खेत्तः । पंचदंसणा०-बारसक०-भय-दुगुं०-ओरालि०-तेजा.-क०-वण्ण०४. अगु० उप० णिमि० अवत्त० खेत्तभंगो। सेसपदा० णाणावरणभंगो। मिच्छ० अवत्त० सत्तचोद्द ० । सेसपदा० णाणावरणभंगो। सादावे. असंखेज्जभागवड्डि०-हाणि-अवट्ठि.. अवत्त० सव्वलो । सेसपदा० णाणावरणभंगो। असादादिऍक्कारस० सादभंगो। इत्थिवे. दोवड्वि-हाणी दिवड्डचोद्द० । सेसाणं णाणावरणभंगो। पुरिस० दोवड्डि-हाणी छच्चोद० । सेसपदा सादभंगो। णवुसतिरिक्खग०-एइंदि० हुंडसं०-तिरिक्खाणु०- परघादुस्सा.. थावर-सुहुम-पज्जत्त-अपजत्त-पत्तेय०-साधार०-भग-अणा-णीचा० सव्वपदा असादभंगो। चादुआयु०-वेउब्बियछ०-मणुसगदिदुग-चदुजादि-पंचसंठा०-ओरालि अंगो०. छस्संघ०-आदाउज्जो० दोविहा०-तस-बादर-सुभग-दोसर-आदे०-उच्चा० तिरिक्खोघं । आहारदुग० तित्थय० खेत्त० । ___६४३. ओरालियमिस्से धुविगाणं दोवड्डि-हा० लोग० असंखेन्ज. सचलोगो वा । सेसपदा सबलोगो । णवरि मिच्छ० अवत्त० खेत्तभंगो। देवगदिपंचगस्स तिण्णिवड्डि. हाणि-अवढि० खेत्तः । सादादिऍकारसपगदीणं असंखेज्जभागवड्डि-हाणि-अवढि०-अवत० तवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यात गुणहानि और अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। पाँच दर्शनावरण, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माणके अवक्तव्यके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्रके समान है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम सातबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदों के बन्धक जीवोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। सातावेदनीयकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यात भागहानि, अवस्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंका भा ज्ञानावरणके समान है। असाता आदि ग्यारह प्रकृतियोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है। स्त्रीवेदकी दो वृद्धि और दो हानियों के बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। पुरुषवेदकी दो वृद्धि और दो हानियोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम छहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है। नपुंसकवेद, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रिय जाति, हुण्डसंस्थान, तिर्यश्चगत्यानुः पूर्वी, परघात, उच्छ्वास, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रके सब पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग आसातावेदनीयके समान है। चार आयु, वैक्रियिक छह, मनुष्यगतिद्विक, चार जाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, त्रस, बादर, सुभग, दो स्वर, आदेय और उच्चगोत्रके "सब पदोंका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिके सब पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्रके समान है। ६४३. औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली और औदारिक शरीरकी दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्रके समान है। देवगति पश्चककी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्रके समान है । साता आदि ग्यारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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