________________
वडिबंधे फोसणं
४६५ सव्वलो० । दोवड्डि-हाणी लोगस्स असंखेज्जदिभागो सव्वलो० । णवंस-तिरिक्खग.. एइंदि० हुंडसं०-तिरिक्खाणु०-पर-उस्सा०-थावर-सुहुम-पज्जत्त-अपज्जत्त-पत्तेय०-साधार०दूभग०-अणादें-णीचा० ऍकवड्डि-हाणि-अवढि० सबलो० । दोवड्डि-हाणी लो० असंखे. सव्वलो० । अवत्त० खेत्तक । दोआयु० तिरिक्खोघं । इत्थि०-पुरिस०-मणुसगदिदुगचदुजादि-पंचसंठा०-ओरालि अंगो०-छस्संघ०-आदाव-दोविहा०-तस-सुभग-दोसर-आदेजउच्चा० दोवड्डि-हाणि लोग० असंखे । सेसं सव्वलो० । उज्जो०-जसगि०-बादर० दोवड्डि-हाणि० सत्तचौद० । सेसाणं सव्वलो० ।
९४४. वेउब्वियकायजोगीसु धुविगाणं तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० अट्ठ-तेरह०। सादादिवारस०-उज्जोव० सव्वपदा अट्ठ-तेरहचों। थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणुवंधि०४. णकुंस०-तिरिक्खग०- हुंडसं०-तिरिक्खाणु०-दूभग-अणादे०-णीचा० तिण्णिवड्डि-हाणिअवढि० अट्ठ-तेरह । अवत्त० अट्ठचोद्द० । णवरि मिच्छ० अवत्त० अट्ठ-बारह । इत्थि..
प्रकृतियोंकी असंख्यातभाग वृद्धि, असंख्यात भागहानि, अवस्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सर लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नपुंसकवेद, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रिय जाति, हुण्डसंस्थान, तियश्चगत्यानुपूर्वी, परघात, रछ्वास, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रकी एक वृद्धि, एक हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्रके समान है। दो आयुका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, मनुष्यगतिद्विक, चार जाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, आतप, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर, आदेय और उच्चगोत्रकी दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। उद्योत, यशःकीर्ति और बादरकी दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंने ने कुछ कम सातबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने सत्र लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
६४४. वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें ध्रव बन्धवाली प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ वटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। साता आदि बारह और उद्योतके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजु और कुछ कम तेरहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार, नपुंसकवेद, तिर्यञ्चगति, हुण्डसंस्थान, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और कुछ कम तेरहवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजु क्षेत्रको स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके प्रवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और कुछ कम बारहवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, पुरुपवेद, पञ्चेन्द्रिय जाति,
५६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org