Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 476
________________ ४६३ वड्विबंधे फोसणं छस्संघ०-दोविहा०पंचिंदि०-तस-सुभग-दोसर-आदें तिण्णिवट्ठि-हाणि-अवट्ठि• अट्ठबारह । अवत्त० अट्ट-चौदह । पुरिसे तिण्णिवड्डि-हाणि-अवत्त० इत्थिभंगो । असंखेज्जगुणवड्डि-हाणी० णाणावरणभंगो। णिरय-देवायुग-तिण्णिजादि-आहारदुगं खेत । तिरिक्ख-मणुसायु. दोपदा अट्टचोद० । वेउब्धियछ. तित्थय० ओघं । मणुसगदि मणुसाणु०-आदाव० सयपदा अडचोद० । उज्जो० सव्वपदा अट्ठ-तेरह । एवं बादर० । णवरि अवत्त० खेत्त० । सुहुम-अपज्जत्त-साधारण. तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० लो० असंखें सव्वलो । अवत्त० खेत्तः । जसगि० असंखेन्जगुणवड्वि-हाणी० खेतः । सेसपदा अट्ठ-तेरहचो। [उच्चा० असंखेज्जगुणवड्डि-हाणी खत्त । सेसपदा अट्ठचो०] एवं पंचिंदियभंगो पंचमण पंचवचि० चक्खुदं०-सण्णि त्ति । १४२. ओरालियकायजोगीसुपंचणा०-चदुदंस०-चदुसंज० पंचंत० असंखेज्जभागवडिहाणि-अवढि० सव्वलो० । दोवड्डि-हा० लोगस्स असंखे० सव्वलो० । असंखेज्जगुणवड्डि है कि अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, पाँच संस्थान, औदारिक आंगोपाङ्ग, छह संहनन, दो विहायोगति, पञ्चेन्द्रियजाति, त्रस, सुभग, दो स्वर और आदेयकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पुरुषवेदकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका भङ्ग स्त्रीवेदके समान है। असंख्यात गुणवृद्धि और असंख्यात गुणहानिका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। नरकायु, देवायु, तीन जाति और आहारकद्विकका भङ्ग क्षेत्र के समान है। तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुके दो पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिक छह और तीर्थंकर प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और आतपके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । उद्योतके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह वटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार बादर प्रकृतिकी अपेक्षा स्पर्शन जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवाने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। यशःकीर्तिकी असंख्यात गुणवृद्धि और असंख्यात गुणहानिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । शेष पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजु और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । उच्चगोत्रकी असंख्यात गुणवृद्धि और असंख्यात गुणहानिका भङ्ग क्षेत्रके समान है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रियों के समान पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, चक्षुःदर्शनी और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये। ६४२. औदारिककाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानियोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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