Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 479
________________ ४६६ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे पुरिस०-पंचिंदि०-पंचसंठा०-ओरालि०अंगो०-छस्संघ०-दोविहा०-तस०-सुभग-दोसरआदेज० तिण्णिवड्डि हाणि-अवढि० अट्ठ-बारह० । अवत्त० अढचों । दोआयु० दोपदा अट्ठचौद्द० । मणुसग०-मणुसाणु०-आदा०-उच्चागो० सव्वपदा अट्टचोद्द । एइंदि०. थावर-अवत्त० अट्ठचौद्द० । सेसाणं पदा अट्ठ-णवचों । तित्थय० अवत्त० खेत्तः । सेसपदा अट्ठचोद। ९४५. वेउविमि०-आहार०-आहारमि०-कम्मइ०-अवगदवे०-मणपञ्जव०-संजदसामाइ०-छेदो०-परिहार०-सुहुमसंप० खेत्त० । णवरि कम्मइ० मिच्छत्त० अवत्त० एक्कारह। ६४६. इत्थिवे. पंचणा-चदुदंसणा०-चदुसंज०-पंचंत० पंचिंदियभंगो। णवरि अवत्त० णत्थि। थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणुबंधि०४-णवुस-तिरिक्खग०-एइंदि०-हुंडसं०तिरिक्खाणु०-थावर-भग-अणादे०-णीचा० अवत्त० अट्टचोद्द० । सेसपदा अट्टचोद्द० सव्वलो० । णवरि मिच्छत्त० अवत्त० अट्ठ-णवचो। णिद्दा-पचला-अट्ठकसाय-भय०पाँच संस्थान, औदारिक श्राङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वरों और आदेयकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम बारहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयुओंके दो पदोंके बन्धक जोवोने कुछ कम आठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप और उच्चगोत्रके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। एकेन्द्रिय जाति और स्थावरके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदों के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजु और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है। शेष पदोंके वन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। ६४५. वैक्रियिकभिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, अपगतवेदी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंका भङ्ग क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि कार्मणकाययोगी जीवोंमें मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम ग्यारहबटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। ४६. स्त्रीवेदी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायका भङ्ग पञ्चेन्द्रियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि यहाँ इनका अवक्तव्य पद नहीं है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, अनन्तानुवन्धी चार, नपुंसकवेद, तिर्यश्चगति, एकेन्द्रिय जाति, हुण्ड संस्थान, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, स्थावर, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजु क्षत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने कुछकम आठबटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम नौबटे चौदह राजु क्षत्रका स्पर्शन किया है। निद्रा, प्रचला, आठ कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक शरीर, तैजस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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