Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 472
________________ वडिबंधे फोसणं ४५६ बादरे तेरह । पंचंदि०-तस० दोवड्डिहाणी० लो० असंखेन्ज० बारहचोद्द० । ओरालि. दोवड्डि-हाणिसव्वेसिं अणंतजीवाणं असंखज्जभागवड्डि-हाणि-अवढि०-अवत्त० सयलो०। ओरालियसरीर० अवत्तव्यं खत्त। ९३६. पंचिंदियतिरिक्ख०३ धुविगाणं तिण्णिवड्डि हाणि अवढि० लोग० असंखें सव्वलो० । थोणगिद्धि०३-मिच्छ०-अट्ठक०-णqसग०-तिरिक्खग०-एइंदि०-ओरालि.. हुंड०-तिरिक्खाणु०-परघा०--उस्सा०-थावर-सुहुम-पजत्तापजत्त-पत्ते. साधार० दूभग०अणादें-अजस० णीचा तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० लोग० असंखे० सव्वलो० । अवत्त० खेत । णवरि मिच्छ०-अजस० अवत्त० सत्तचोद ० । इस्थिवे० अवत्त० खेत्त० । सेसं दिवड्डचौद्दस० । सादादिदस० सव्वपदा लोगस्स असंखे सबलो० । पुरिसवे०-णिरयदेवगदि-समचदु०-दोआणु० दोविहा०-सुभग-दोसर-आदें-उच्चा० अवत्त० खेत। सेसपदा छचोद० । चदुआयु० खेत्त० । मणुसगदि-तिण्णिजादि-चदुसंठा०-ओरालि अंगो०छस्संघ०-आदाव० सव्वपदा खेत । पंचिंदि०-उब्धिय० बेउव्वियअंगो०-तस० अवत्त० खेत । सेसपदा बारहचोद । उज्जो०-जस० सवपदा सत्तचोद० । बादर० अवत्त० कुछ कम सातवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि बादर प्रकृतिकी अपेक्षा कुछ कम तेरहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पञ्चेन्द्रियजाति और त्रसकी दो वृद्धि और दो हानियों के बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और बारहबटे चौदह राजुक्षेत्रका स्पर्शन किया है । औदारिक शरीरकी दो वृद्धि और दो हानि तथा सब अनन्त जीवोंके असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भाग हानि, अवस्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । औदारिकशरीरके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। ६३६. पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिकमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सबलोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, आठ कषाय, नपुंसक वेद, तिर्यश्चगति, एकेन्द्रियजाति, औदारिक शरीर, हुण्डसंस्थान, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, परघात, उच्छास, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, दुर्भग, अनादेय, अयशःकीर्ति और नीचगोत्रकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व और अयशःकीर्तिके अवक्तव्यपदकं बन्धक जीवोंने कुछ कम सातवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्रीवेदके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । शेष स्पर्शन कुछ कम डेढ़ बटे चौदह राजू है। साता आदि दस प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पुरुषवेद, नरकगति, देवगति, समचतुरस्रसंस्थान, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, सुभग, दो स्वर, आदेय और उच्चगोत्रके प्रवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छहबटे चौदह राजू है। चार आयुओंका भङ्ग क्षेत्रके समान है । मनुष्यगति, तीन जाति, चार संस्थान, औदारिकआङ्गोपाङ्ग, छह संहनन और आतपके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। पञ्चेन्द्रियजाति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकआङ्गोपाङ्ग और त्रसके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष पदोंके वन्धक जीवोंने कुछ कम बारहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। उद्योत और यशःकीर्तिके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम सातबटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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