Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 461
________________ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे ६१८. अवगदवे० पंचणा० चदुदंस० चदुसंज० - पंचं तरा० संखेज्जभागवड्डि-हाणी संखज्जगुणवड्डि हाणि अवत्त० सव्व० के० १ संखेज्जदिभागो । अवट्ठि ० सव्वजी ० केव० ९ संखेज्जा भागा । सादावे० जसगि० उच्चा० तिण्णिवड्डि-हाणि अवत० संखेज्जदिभागो । अवट्टि • संखेज्जा भागा। सुहुमसंप० सव्वाणं संखज्जभागवड्डि-हाणी संख ज्जदिभागो । अवडि० संखेज्जा भागा । एवं भागाभागं समत्तं परिमाणं ४४८ १६. परिमाणाणुगमेण दुवि०-ओघे० आदे० | ओघे० पंचणा० चदुदंसणा०चदुभंज ०-पंचत० असंखेज्जभागवड्डि-हाणि-अवट्ठि० केवडिया ? अनंता । बेवड्डि-हाणी केव० १ असंखेज्जा । असंखेज्जगुणवड्डि हाणि अवत्त० केव० ९ संखज्जा । श्रीणगिद्धि०३मिच्छ० - अनंताणुबंधि०४ - अपचक्खाणा०४ - ओरालिय० णाणाव० भंगो। णवरि अवत्त ० असंखेज्जा । णिद्दा - पचला-पच्चक्खाणा०४ - भय ०- - दुर्गु० - तेजा० क० वण्ण ०४ - अगु० -उप०णिमि० असंखेज्जभागवड्डि-हाणि-अवडि० अणंता । बेवड्डि- हाणि केव० १ असंखज्जा अवत्त संखेज्जा । तिणिआयु० दोपदा० असंखेज्जा । तिरिक्खायु० दोषदा अनंता । ६१८. अपगतवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी संख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागहानि, संख्यातगुणवृद्धि, संख्यात गुणहानि और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? संख्यातवें भाग प्रमाण हैं । अवस्थित पदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? संख्यात बहुभाग प्रमाण हैं । सातावेदनीय, यशः कीर्ति और उच्चगोत्रकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यातवें भाग प्रमाण हैं । अवस्थितपदके बन्धक जीव संख्यात बहुभाग प्रमाण हैं । सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी संख्यात भागवृद्धि और संख्गात भागहानिके बन्धक जीव संख्यातवें भाग प्रमाण हैं । अवस्थितपदके बन्धक जीव संख्यात बहुभाग प्रमाण हैं । इस प्रकार भागाभाग समाप्त हुआ । परिमाण १६. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । श्रघसे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितपदके बन्धक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । दो वृद्धि और दो हानियों के बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । असंख्यात गुणवृद्धि, असंख्यात गुणहानि और अवक्तव्य पदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । स्त्यानगृद्धि तीन, मिध्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार, अप्रत्याख्यानावरण चार और औदारिक शरीरका भंग ज्ञानावरणके समान है । इतनी विशेषता है कि अवक्तव्यपदके बन्धक जीव असंख्यात हैं । निद्रा, प्रचला, प्रत्याख्यानावरण चार, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, उपघात और निर्माणकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितपदके बन्धक जीव अनन्त हैं । दो वृद्धि और दो हानि पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । अवक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यात हैं। तीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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