Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 460
________________ वड्विबंधे भागाभागो ४४७ आयु० अवत्त० सव्व० केव० १ असंखेजदिभागो । असंखेजदिभागहाणी सव्व० केव० ? असंखजा भागा । वेउव्वियछ०-तित्थय तिण्णिवड्डि-हाणि अवत्त० सव्व० केव० ? असंखेंअदिभागो। अवढि० सव्व० केव० १ असंखेजा भागा। आहारदुर्ग तिण्णिवडिहा. अवत्त० सव्व० केव० १ संखेजभागो। अवढि० सव्व० केव० ? संखेजा भागा। एवं तिरिक्खोघं कायजोगि-ओरालि०-ओरालियमि०-णवुस०-कोधादि०४-मदि०-सुद०असंज०-अचक्खुदं०-तिण्णिले०-भवसि० अब्भवसि०-मिच्छा०-आहारग त्ति एदेसि ओघेण साधेदूण अप्पप्पणो पगदी णादण कादव्वं । एसिं असंखजजीविगा तेसिं ओघे देवगदिभंगो । ए संखेजजीविगा ते आहारसरीरभंगो। ए अणंतजीविगा ते असादभंगो। णवरि एइंदिय-वणप्फादि-णियोदाणं धुविगाणं असंखे० भागवड्डि-हाणी केव० ? असंखेजदिभागो। अवढि० असंखेजा भागा। सेसाणं एगव ड्डि-हाणि-अवत्त० सब० के०? असंखञ्जदिभागो । अवढि० सव्व० केव० ? असंखेजा भागा। ६१७. कम्मइग० परियत्तमणियाणि अवत्त० सव्व० केव० ? असंखेज्जदिभागो । अवट्टि० सव्व० केव० १ असंखज्जा भागा। एवं अणाहारा० । कीर्ति और नीचगोत्रका भंग सातावेदनीयक समान है। चार आयुओंके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। असंख्यात भागहानिके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं। वैक्रियिक छह और तीर्थंकर प्रकृतिकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। अवस्थितपदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं । आहारकद्विककी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? संख्यातवें भाग प्रमाण हैं । अवस्थितपदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? संख्यात बहभाग प्रमाण हैं। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्च, काययोगी, औदारिक काययोगी, औदारिक मिश्रकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चारं कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुःदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और आहारक इनके ओघसे साधकर अपनी अपनी प्रकृतियोंको जानकर भागाभाग कहना चाहिये । जिन मार्गणाओंका प्रमाण असंख्यात है, उनमें ओघके अनुसार देवगतिके अनुसार भंग जानना चाहिये । तथा जिन मार्गणाओंका प्रमाण संख्यात है उनका ओघके अनुसार आहारक शरीरके समान भंग जानना चाहिये । और जिन मार्गणाओंका प्रमाण अनन्त है उनका असातावेदनीयके समान भंग जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रिय, वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंमें ध्रवबन्धवाली प्रकृतियोंकी असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानिक बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । अवस्थितपदके बन्धक जीव असंख्यात बह भाग प्रमाण हैं। शेष प्रकृतियोंकी एक वृद्धि, एक हानि और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सब जीवोंक कितने भाग प्रमाण हैं ? असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। अवस्थितपदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण है ? असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं। ६१७. कार्मणकाययोगीजीवोंमें परिवर्तमान प्रकृतियों के प्रवक्तव्यपदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? असंख्यातघे भाग प्रमाण हैं । अवस्थितपदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं । इसी प्रकार अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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