Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 462
________________ वडिवंधे परिमाणं ४४६ वेउब्धियछकं तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि०-अवत्त० केव० १ असंखज्जा। आहारदुर्ग तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि०-अवत्त० केव० १ संखेजा। तित्थय तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० असंखजा । अवत्त० संखेंजा । सेसाणं असंखेजभागवड्डि-हाणि-अवढि० केव० १ अणंता। सेसपदा केव० १ असंखेजा। एवं ओघभंगो तिरिक्खोघं कायजोगि-ओरालि०-ओरालियमि०–णवुस०-कोधादि०४-मदि०-सुद०-असंज०-अचक्खुदं०-तिण्णिले०-भवसि०अब्भवसि०-मिच्छादि०-असण्णि-आहारग त्ति । णवरि ओरालियमि० देवगदिपंचग० तिण्णिवड्डि-हा०-अवट्ठि• केव० ? संखेजा । सेसाणं पि किंचि विसेसो णादव्यो । ६२०. णिरएसु मणुसायु० दोपदा तित्थय० अवत्त० संखेज्जा। सेसाणं सव्वपदा असंखेज्जा । एवं सव्वणेरइय-देवाण वेउवि० । णवरि सव्वढे संखेजा। ६२१. सव्वपंचिंदियतिरिक्ख० सबपगदीणं सव्वपदा असंखेंजा । एवं मणुसअपज्जत्त-सव्वविगलिंदि०-सव्वपुढवि०-आउ०-तेउ०-वाउ०-बादरवणप्फदिपत्तेपंचिंदिय-तसअपजत्त-वेउव्वियमि०-विभंग । ६२२. मणुसेसु पंचणा०-णवदंसणा०-मिच्छ०-सोलसक०-भय-दु०-तेजा०क०आयुओंके दो पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। तिर्यश्चायुके दो पदोंके बन्धक जीव अनन्त हैं। वैक्रियिक छहकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। आहारकद्विककी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। तीर्थंकरकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीव असंख्यात हैं। अवक्तव्यपदके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितपदके बन्धक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। शेष पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार ओघके समान सामान्य तिर्यञ्च, काययोगी, औदाकि काययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कपायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदशनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और आहारक जीवोके जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें देवगतिपश्चककी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदके वन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । शेषमें भी कुछ विशेषता जाननी चाहिये। २०. नारकियोंमें मनुष्यायुके दो पदोंके और तीर्थङ्कर प्रकृतिके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार सब नारकी, देव, और वैक्रियिककाययोगी जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि सर्वार्थसिद्धिमें सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं। २१. सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चोंमें सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्त, सब विकलेन्द्रिय, सब पृथवी कायिक, सब जलकायिक, सब अग्निकायिक, सब वायुकायिक, वादर वनस्पति कायिक प्रत्येकशरीर, पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त, बस अपर्याप्त, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और विभङ्गज्ञानी जीवोंमें जानना चाहिये। २२. मनुष्यों में पाँच ज्ञानावरण नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलवु , उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायकी तीन ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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