Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 463
________________ ४५० महाबंधे हिदिबंधाहियारे वण्ण०४-अगु०-उप-णिमि०-पंचंत. तिण्णिवडि-हाणि-अवद्भिः केव० १ असंखेंजा। सेसपदा संखेंज्जा । दोआयु०-वेउब्धियछ०-आहारदुग-तित्थय० तिण्णिवड्डि-हाणि-अवडि. अवत्त० संखेंज्जा । सेसाणं सव्वपदा असंखेंज्जा। णवरि साद०-जस०-उच्चा० असंखेंजगुणववि-हाणी केव० ? संखेंज्जा। मणुसपज्ज-मणुसिणीसु सव्वपदा संखेजा। एवं एस भंगो आहार-आहारमि०-अवगदवे०-मणपज्ज०-संजद-सामाइ०-छेदो०-परिहार०-सुहम। २३. सव्वएइंदिय-वणप्फदि-णियोदेसु मणुसायुगस्स दोपदा असंखेंज्जा। सेसाणं सव्वपदा अणंता। ६२४. पंचिंदिय-तस०२ पंचणा०-चदुदंस०-चदुसंज. पंचंत. असंखेंजगुणवड्डिहाणी-अवत्त. केव० ? संखेज्जा। सेसपदा असंखेजा। णिद्दा-पचला-भय-दु.-पच्चक्खाणा०४-तेजइगादिणव-तित्थय० अवत्त० केव० ? संखेंज्जा । सेसपदा असंखेंज्जा । आहारदुर्ग ओघ । सेसाणं सवपगदीणं सवपदा केव० ? असंखेंज्जा। एवं पंचमण-पंचवचि०-इत्थि०-पुरिस०-चक्खुदं०-सण्णि त्ति । णवरि इत्थि. तित्थय० सव्वपदा संखेज्जा। __ ९२५. कम्मइग०-अणाहार० देवगदिपंचगस्स अवट्ठि० केवडिया ? संखेज्जा। सेसाणि अवढि०-अवत्त० केव० १ अणंता । मिच्छत्त० अवत्त० असंखेजा। वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीव कितने हैं ?. असंख्यात हैं। शेष पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं। दो आयु, वैक्रियिक छह, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिकी तीन वृद्धि, तीन हानि, अवस्थित, और अवक्तव्य पदके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। इतनी विशेषता है कि सातावेदनीय, यश कीर्ति और उच्चगोत्रकी असंख्यात गुणवृद्धि और असंख्यात गुणहानिके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें सब पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं। इसी प्रकार यह भङ्ग आहारककाययोगी, आहारक मिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापना संयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीवोंके जानना चाहिये। ६२३. सब एकेन्द्रिय, वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंमें मनुष्यायुके दो पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव अनन्त हैं। २४. पञ्चन्द्रियद्विक और त्रसद्विक जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यात गुणहानि और अवक्तव्य पदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। शेष पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं । निद्रा, प्रचला जुगुप्सा, प्रत्याख्यानावरण चार, तैजसशरीरादि नौ और तीर्थङ्कर प्रकृतिके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। शेष पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं । आहारकद्विकका भङ्ग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, चक्षुःदर्शनी और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेदी जीवोंमें तीर्थङ्कर प्रकृतिके सब पदोंके बन्धक जीव संख्यात हैं। २५. कार्मण काययोगी और अनाहारक जीवोंमें देवगति पञ्चकके अवस्थित पदके बन्धक व कितने हैं ? संख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंके अवस्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव असंख्यात हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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