Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 466
________________ बंधे खेत्तं खतं २९. खेत्ताणुगमेण दुवि० - प्रोघे ० आदे० । ओघे० पंचणा० चदुदंसणा० चदुसंजपंचत० असंखेज्ज-भागवड्डि- हाणि अवट्ठि० केवडि खेत्ते ? सव्वलोगे । सेसपदा लोगस्स असंखज्जदिभागे । पंचदंस०-मिच्छ० बारसक०-भय-दुर्गु० - तेजइ गादिणव ०णाणावरणभंगो । सादावे ० - पुरिस०० जस० उच्चा० असंखेज्जभागवड्डि- हाणि अवि ९०-अवत्त० सव्वलोगे । सेसपदा लोगस्स असंखज्जदिभागे । तिण्णिआयु० - बेउब्वियछ० - आहारदुग- तित्थय ० सव्वपदा लोगस्स असंखे । तिरिक्खायु० दोपदा केवडि खेत्ते : सव्वलोगे । साणं असंखेज्जभागवड्डि-हाणि-अवट्ठि ० - अवत्त० सव्वलोगे । दोवड्डि-हाणी लोगस्स असंखें | एवं ओघभंगो तिरिक्खोघो कायजोगि ओरालियका० ओरालियमि० णवुंस० कोधादि ०४मदि० सुद० - असं ० . अचक्खुदं ० - तिण्णिले० भवसि ० अब्भवसि ० - मिच्छा० - असणि आहारंगत्ति । तं पित्तं ओघेण साधेदव्वं । 1 ४५३ ३०. एइंदिय- सुहुमइंदिय पज्जत्तापज्जत्ता पुढवि०-२ ० आउ० तेउ० - वाउ० तेसिं सुहुम-पज्जत - अपज्जत्त-वणप्फदि- णियोद० तेसिं च सुहुम पज्जत्तापज्जत्ताणं मणुसायु ० दोपदा लोगस्स असंखे । सेसाणं सव्वपगदीणं सव्वपदा सव्वलोगे । सव्वबाद रेइंदिए क्षेत्र २६. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैं -आंघ और आदेश । श्रघसे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है । शेष पदों बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है । पाँच दर्शनावरण, मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा और तैजसशरीरादि नौ प्रकृतियों का भंग ज्ञानावरणके समान है । सातावेदनीय, पुरुषवेद, यशःकीति और उच्चगोत्रकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका सव लोक क्षेत्र है । शेष पदोंके बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है । तीन आयु, वैक्रियिक छह, आहारकद्विक और तीर्थंकर प्रकृतिके सब पदोंका लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र हैं । तिर्यवायु के दो पदोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है। शेप प्रकृतियोंकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि, अवस्थित और वक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है । दो वृद्धि और दो हानिके बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है । इसी प्रकार ओोधके समान सामान्य तिर्यञ्च, काययोगी, औदारिक काययोगी, औदारिक मिश्रकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कपायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचतुदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिध्यादृष्टि, असंज्ञी और आहारक जीवों के जानना चाहिये । यह क्षेत्र भी ओघ के समान साध लेना चाहिये । Jain Education International ६३०. एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, उनके पर्याप्त और अपर्याप्त पृथिवीकायिक, जलकायिक, कायिक, वायुकायिक तथा इनके सूक्ष्म तथा पर्याप्त और अपर्याप्त, वनस्पतिकायिक, निगोद तथा इनके सूक्ष्म तथा पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंमें मनुष्यायुके दो पदोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। शेष सब प्रकृतियोंके सब पदोंका क्षेत्र सब लोक है । सब बादर एकेन्द्रिय जीवोंमें For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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