Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 468
________________ ४५५ बिंधे फोस असंखे । सेसाणं सव्वपगदीणं सव्वपवदा लो० असंखे । एवं बादरवणप्फदि णियोदपज्जत्त-अपज्जत्त बादरवणप्फदिपत्तेय० तेसिं अपज्जत्त० । ९३२. कम्मइ० अणाहारगेसु देवगइपंचगस्स सव्वपदा लो असं० । सेसाणं सम्यपगदीणं सव्वपदा सव्वलो० । सेसाणं णिरयादि याव सणि ति संखेज्ज- असंखज्जविगाणं सवा दीणं सव्वपदा लोगस्स असंखेज्ज० । एवं खेत्तं समत्तं । फोसणं ३३. फोससाणुगमेण दुवि० ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा० चदुदंसणा चदुसंज पंचंत० असंखज्जभागवड्डि-हाणि अवडि० बंधगेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं । सव्वलो ० । बेवड्ड-हाणि० लोग० असं अट्ठचो० सव्वलोगो वा । असंखेजगुणवड्डि-हाणि-अवत्त ० लो० असंखे । थीणगिद्धि ०३ - अनंताणुबंधि०४ अवत्त० अagar स० । सेसपदा णाणावरणभंगो | णिद्दा- पचला-पच्चक्खाणा ०४ - मय० - दु० तेजइगादिणव० अवत्त० लोग० असंखेज्ज० ० | सेसपदा णाणावरणभंगो । सादावे० अवत्त० सव्वलो ० । सेसपदा णाणा 0. पदके बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है । शेष सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है । इसी प्रकार बादर वनस्पतिकायिक, निगोद और इनके पर्याप्त, अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर और इनके अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये । ३२. कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें देवगति पञ्चकके सब पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। शेष सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है । शेष नरकगति से लेकर संज्ञी मार्गणातक संख्यात और असंख्यात जीव राशिवाली मार्गणाओं में सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । इसप्रकार क्षेत्र समाप्त हुआ । स्पर्शन ३३. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश | ओघ पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भाग हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानियोंके बन्धक जीवोंने लोकके श्रसंख्यातवेंभाग प्रमाण, कुछ काम आठबटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । असंख्यात गुणवृद्धि, असंख्यात गुणहानि और अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्यानगृद्धि तीन और अनन्तानुबन्धी चारके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुंछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंका भङ्ग ज्ञानावरके समान है । निद्रा, प्रचला, प्रत्याख्यानावरण चार, भय, जुगुप्सा और तैजसशरीरादि नौ प्रकृतियोंके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेष पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । सातावेदनीयके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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