Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 444
________________ बिंधे अतरं खेज्जगुणहा० जह० उक्क० तो ० । एवं सव्वाणं असंखेज्जगुणवड्डि-हाणी० । ८६४. ओरालिय मिस्सका० धुविगाणं तिण्णिवड्डि-हा० जह० एग०, उक्क • अंतो० | अवट्ठि० जह० एग०, उक्क० तिणि सम० । देवगदि ०४ - तित्थय० तिण्णिव ड्डि-हा० णाणावरणभंगो | अवट्ठि० जह० एग०, उक्क० बेसम० । दोआयु० दोपदा० अपज्जतभंगो | सेसाणं परियत्तमाणियाणं तिण्णिवड्डि-हाणि अवट्ठि० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त • जहण्णु अंतो० । 1 ४३१ ८६५. वेडव्वियमि० वेउब्वियकायजोगिभंगो। णवरि परियत्तमाणियाणं अवत्त० जह० उक्क० अंतो० । एवं आहारमि० । कम्मइ० सव्वाणं णत्थि अंतरं । अथवा वेउव्वियमि० - ओरालियम ० - कम्मइ० अवत्त० णत्थि अंतरं । ८९६. इत्थिवे० पंचणा० चदुदंस ० चदुसंज० - पंचत• बेवड्डि-हाणी० जह० एग०, उक्क० अंतो० | संखेज्जगुणवड्डि-हा० जह० एग०, उक्क० पुव्वकोडियुध । असंखेज्जगुणवड्डि-हा० जह० उक्क० अंतो० । अवट्ठि० जह० एग० उक्क० तिण्णि समयं । थीणगिद्धि०३ मिच्छ०-अणंताणुबंधि०४ तिण्णिवड्डि-हा० अवट्ठि० जह० एग०, उक्क ० पणवण्णं पलिदो० देसू० | अवत० जह० अंतो०, उक्क० पलिदोवमसदपुध० । णिद्दा समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार सब जीवोंके असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यात गुणहानिका अन्तर काल जानना चाहिये । ८६४. औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि और तीन हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित बन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर तीन समय है । देवगति चार और तीर्थङ्कर प्रकृतिकी तीन वृद्धि और तीन हानियोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अवस्थित बन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है । दो आयुत्रोंके दो पदोंका भङ्ग अपर्याप्तकों के समान है । शेष परिवर्तमान प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित वन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य बन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर मुहूर्त है। 1 ८५. वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंका भङ्ग वैक्रियिककाययोगी जीवों के समान है । इतनी विशेषता है कि परिवर्तमान प्रकृतियों के अवक्तव्य बन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्ते है । इसीप्रकार आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके जानना चाहिये । कार्मणकाययोगी जीवोंमें सब कर्मोंका अन्तर काल नहीं है । अथवा वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी और कार्मकाययोगी जीवों में अवक्तव्य बन्धका अन्तरकाल नहीं है । ८६६. स्त्रीवेदी जीवांमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी दो वृद्धि और दो हानियोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरपूर्वकोटि पृथक्त्व प्रमाण है । असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित बन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर तीन समय है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचारकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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