Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 457
________________ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे वेदगभंगो । सेसाणं तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० ज० ए०, उ० अंतो० । अवत्त० जह० एग०, उ० अंतो० । मिच्छ० मदि०भंगो । सण्णि० पंचिंदियपजतभंगो। १२. असण्णीसु धुविगाणं असंखेज्जभागवड्डि-हाणि० जह० एग०, उ० अंतो० । संखेज्जभागवड्डि-हाणि० जह० एग०, उ० अणंतका० । एवं संखेज्जगुणवड्डि-हाणि । णवरि जह० खुद्दा० समयू० । एसिं संखेज्जगुणवड्डि-हाणि० अत्थि तेसिं सव्वेसि पि एवं चेव । अवढि० जह० एग०, उ० बे-तिण्णि सम । चदुआयु०-बउब्वियछ०-मणुसग०. मणुसाणु०-उच्चा० तिरिक्खोघं । तिरिक्खग०-तिरिक्खाणु०-णीचा० असंखेंजभागवड्डिहाणि-अवट्ठि० जह० एग०, उ० अंतो० । संखेंजभागवड्डि-हाणि० णाणावरणभंगो । अवत्त० जह० अंतो०, उ० असंखेंजा लोगा। सेसाणं असंखेंजभागवड्डि-हाणि-अवट्ठि० जह० एग०, उ० अंतो० । संखेंजभागवडि-हाणी० णाणावरणभंगो। अवत्त० जह० उ० अंतो० । १३. अहारा० ओघं । णवरि यम्हि अणंतका० तम्हि अगुल० असंखेंज. कादयो । सेसं ओघ । अणाहार० कम्मइगभंगो । एवं अंतरं समत्तं ।। समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग मनायोगी जीवोंक समान है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवाम ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंका भङ्ग वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके समान है। शेष प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित बन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवक्तव्य अन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमहत है। मिथ्याष्ट्रि जीवोंमें मत्यज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है । संज्ञी जीवोंमें पञ्चेन्द्रियपर्याप्त जीवोंके समान भङ्ग है। ६१२. असंज्ञी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यात भागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। संख्यात भागवृद्धि, और संख्यातभागहानिका जयन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है। इसी प्रकार संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिका अन्तर काल जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनका जघन्य अन्तर एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहण प्रमाण है। जिनकी संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानि होती है, उन सबके भी इसी प्रकार जानना चाहिये। अवस्थित बन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो-तीन समय है। चार आयु, वैक्रियिक छह, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रका भङ्ग सामन्य तिर्यञ्चोंके समान है। तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित बन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। प्रवक्तव्य बन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्महूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। शेष प्रकृतियोंकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित बन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । संख्यात भागवृद्धि और संख्यात भागहानिका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्य बन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। १३. आहारक जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि जहाँ अनन्तकाल कहा है, वहाँ अङ्गालका असंख्यातवाँ भाग प्रमाण अन्तर कहना चाहिये । शेष भङ्ग ओवके समान है। अनाहारक जीवोंका भङ्ग कामणकाययोगी जीवों के समान है। इसप्रकार अन्तर काल समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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