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पणिक्खवे सामित्तं कस्स० १ यो जहण्णगादो संकिलेसादो उक्कस्सयं संकिलेसं गदो उक्तस्सयं हिदि पि बंधो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स होदि ? यो उक्कस्सयं द्विदिवं० सागारक्खएण. पडिभग्गो तप्पाअोग्गजहण्णए पडिदो तस्स उक्कस्सिया हाणी। तस्सेव से काले उक्कस्सयमवट्ठाणं । सेसाणं सादादीणं तं चेव । णवरि तप्पाओग्ग ति भाणिदव्वं । एवं आणदादि याव सव्वट्ठा त्ति सव्वएइंदि०-विगलिंदि०' पंचकायाणं च। देवा याव सहस्सार त्ति णिरयभंगो। ओरालिय०-वेउब्वियमि०-आहारमि० अपज्जत्तभंगो। वेउव्विय०-आहारका० देवभंगो । कम्मइगा० ओरालियमिस्सभंगो। णवरि अवट्ठाणं बादरएइंदियस्स कादव्वं ।
८३६. अवगदवे० पंचणा०-चदुदंसणा० सादा०-चदुसंज-जसगि०-उच्चा०-पंचंत० उक० वड्डी कस्स० ? अण्णद० उवसामगस्स अणियट्टीवादरसांपराइगस्स दुचरिमादो द्विदिबंधादो चरिमे हिदिबंधे वट्टमाणगस्स तस्स उक्क० षड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? अण्णदरस्स खवगस्स अणियट्टि पढमादो द्विदिबंधादो विदिए द्विदिबंधे वट्टमाण. तस्स० उक्क ० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवठ्ठाणं ।
८४०. आभि०-सुद०-ओधि० पंचणा०-छदसणा०-असादा० बारसक०-पुरिस०अरदि-सोग-भय दुगुं०-दोगदि-पंचिंदि०-चदुसरी०-समचदु०-[ दो ] अंगो०-बजरिस०
स्थावर आदि चार, अस्थिर आदि पाँच, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो जघन्य संक्लेशसे उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करता है, वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य बन्ध कर रहा है, वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । तथा वह तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। शेष सातादि प्रकृतियोंका यही भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि तत्प्रायोग्यके कहना चाहिए। इसी प्रकार आनत कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवों के तथा सब एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और पाँच स्थावरकायिक जीवोंके कहना चाहिए । सामान्य देव और सहस्रार कल्पतकके देवोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है। औदारिक मिश्रकाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है । वैक्रियिक काययोगी और आहारक काययोगी जीवोंमें देवोंके समान भङ्ग है । कार्मणकाय. योगी जीवोंमें औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि अवस्थान यादर एकेन्द्रियके कहना चाहिए।
८३६. अपगतवंदी जीवोंम पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, चार संज्वलन, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर उपशामक अनिवृत्तिवादरसाम्परायिक जीव द्विचरम स्थितिबन्धसे अन्तिम स्थितिवन्धमें अवस्थित है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर क्षपक अनिवृत्तिकरण जीव प्रथम स्थितिबन्धसे द्वितीय स्थितिवन्धमें विद्यमान है.वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है तथा वही तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है।
८४०. आभिनिवाधिकज्ञानी. श्रतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण. छह दर्शनावरण, असाता वंदनीय, बारह कपाय, पुरुषवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, दो गति, पञ्चे
१ मलप्रती-लिदि० पाँचदि-तसपजत्त पंच-इति पाठः ।
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