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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे सव्वत्थोवा उक्कस्सिया हाणी अवट्ठाणं च दो वि तुल्ला । उ० वड्डी संखेंजगु० । सादादीणं एसिं सत्थाणं उक्कस्सियं तेसिं सव्वत्थोवा उक्क० वड्डी। उक्क हाणी अवट्ठाणं च दो वि तुल्ला विसे । सेसाणं णिरयादि याव असण्णि ति सव्वत्थोवा उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी अवट्ठाणं च दो वि तुल्ला विसे० । णवरि कम्मइग-अणाहारगेसु सव्वत्थोवा उक्क० अवट्ठाणं । वड्डी संखेंजगु० । उ० हाणी विसेसाहिया।
एवं उक्कस्सयं समत्तं ८५०, जहण्णए पगदं । दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० सव्वकम्माणं जह० वड्डि. हाणि-अवट्ठाणं च तिण्णि वि तुल्ला। एवं णेरइगादि याव अणाहारग त्ति णेदव्वं । णवरि अवगदवे० सव्वत्थोवा जह० हाणी अवट्ठाणं च दो वि तुल्ला। जह० वड्डी संखेंज्जगु० । एवं सुहुमसंप० ।
एवं अप्पाबहुगं समत्तं। पदणिक्खेवे त्ति समत्तं।
वडिबंधो ८५१. वडिबंधे ति तत्थ इमाणि तेरसेव अणियोगद्दाराणि । तं यथा-समुक्त्तिणा याव अप्पाबहुगे ति।
वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यमिथ्यादृष्टि जीवोंमें उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थान दोनों ही तुल्य होकर सबसे स्तोक हैं। इनसे उत्कृष्ट वृद्धि संख्यातगुणी है। सातादिमेसे जिनका स्वस्थान उत्कृष्ट होता है, उनकी उत्कृष्ट वृद्धि सबसे स्तोक है। इससे उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थान दोनों ही तुल्य होकर विशेष अधिक हैं। शेष नारकियोंसे लेकर असंज्ञी तककी मार्गणाओंमें उत्कृष्ट वृद्धि सबसे स्तोक है। इससे उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थान दोनों ही तुल्य होकर विशेष अधिक हैं। इतनी विशेषता है कि कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें उत्कृष्ट अवस्थान सबसे स्तोक है। इससे उत्कृष्ट वृद्धि संख्यातगुणी है। इससे उत्कृष्ट हानि विशेष अधिक है।
इस प्रकार उत्कृष्ट अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। ८५०. जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकार है-ओघ और आदेश । ओघसे सब कर्मोकी जघन्य वृद्धि, जघन्य हानि और जघन्य अवस्थान तीनों ही तुल्य हैं । इसी प्रकार नारकियोंसे लेकर अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपगतवंदी जीवोंमें जघन्य हानि और जघन्य अवस्थान दोनों ही तुल्य हो कर सबसे स्तोक हैं। इनसे जघन्य वृद्धि संख्यातगुणी है। इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायिक जीवोंके जानना चाहिए।
इस प्रकार अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। इस प्रकार पदनिक्षेप समाप्त हुआ।
वृद्धिबन्ध ८५१. अब वृद्धिधन्धका प्रकरण है । वहाँ ये तेरह अनुयोगद्वार हैं । यथा-समुत्कीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्व तक।
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