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महाबंधे द्विदिबंधाहियारे
दोश्रायु० ज० वि० संखेज्ज० । यहि० विसे० | पंचणोक० - देवर्गादि -- तिरिणसरीर-जस०-उच्चा० ज०वि० असंखेज्ज० । यहि० विसे० | पंचणा०--णवदंसणा ० -सादा०पंचत० ज० हि० विसे० । यहि० विसे० । सोलसक० ज० हि० विसे० । यहि० विसे० | मिच्छ० ज० द्वि० विसे० । यहि० विसे० । तिरिक्खगदि मणुसग दि-ओरालि०णीचा० ज०वि० संखेज्ज० । यद्वि० विसे० । अरदि-सोग - अजस० ज०हि० संखेज्ज० । यहि विसे० । असादा० ज०द्वि० विसे० । यहि० विसे० । इत्थि० ज० ट्टि० विसे | यहि० विसे० । एस० ज० द्वि० विसे० । यहि विसे० । गिरयग० ज०ड० विसे० । यद्वि० विसे० ।
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६८१. अभि० - सुद० -योधि० सव्वत्थोवा लोभसंज० ज० द्वि० । यहि० विसे० । पंचरणा०-- चदुदंसणा ० -- पंचंत० ज० हि० संखेज्ज० । यट्ठि० विसे० । जस०-उच्चा० ज०ट्टि० संखेज्ज० | यद्वि० विसे० । सादा० ज० हि० विसे० । यट्टि० विसे० । मायसंज० ज० डि० संखेज्ज० । यहि० विसे० । माणसंज० ज०वि० विसे० | यहि०
मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे दो श्रायुओं का जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच नोकषाय, देवगति, तीन शरीर, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे सोलह कषायका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, श्रदारिक शरीर और नीच गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अरति शोक और अयशःकीर्तिका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे असातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे नपुंसक वेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नरकगतिका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ।
६८१. ग्राभिनिवोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में लोभसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच ग्रन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यशः कीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुण है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मायासंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे मानसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष
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