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भुजगारबंधे कालाणुगमो
३३० ७२५. तस-तसपज्जत्त० वेउब्बियछक्क-एइंदि०-आहारदुग-आदाव-थावर-सुहुमसाधार तित्थय० भुज०-अप्पढ़. जह० एग०, उक्क० वेसम० । अवढि०-अवत्त० ओषं । वेइंदि० भुज० जह० एग०, उक्क० वेसम० । अप्पद० जह० एग०, उक० तिण्णिसम । अवढि० अवत्त० सेसाणं ओघं । पज्जत्ताणं अपज्जत्तणामाणं च देवगदिभंगो।
७२६. तसअपज्ज० धुविगाणं भुज० जह० एग०, उक्क० चत्तारिसम० । अप्पद० जह० एग०, उक्क० तिण्णिसम० । अवडि. ओधं । दोवेदणीय०-पंचणोक०-तिरिक्खग०पंचिंदि०-हुंडसं०-ओरालि अंगो०-असंपत्त-तिरिक्खाणु०-तस-बादर-पज्जत्त-पत्तेय० अथिरादिपंच-णीचा० भुज० जह० एग०, उक्क० चत्तारिसम० । अप्पद० जह० एग, उक. तिण्णिसम० । अवढि० अवत्त० ओघं । मणुसग०-मणुसाणु० भुज० जह० एग०, उक्क० चत्तारिसम० । अप्पद० जह० एग०, उक्क० बेसम० । [अवढि०-अवत्त०] तिण्णिविगलिंदि०. तसणामाणं च ओघं । णवरि बेइंदि० भुज० वेसम० । सेसाणं भुज०-अप्प० जह० एग०, उक्क०-वेसम० । अवढि०-अवत्त० ओघं ।
७२७. ओरालियमि० मणुसग०-मणुसाणु०-उच्चा० भुज०-अप्पद० जह० एग०,उक. तिण्णिसम० बेसम० । अवढि०-अवत्त० ओघं । देवगदि०४-तित्थय० भुज-अप्पद०
७२५. बस और त्रस पर्याप्त जीवोंमें वैक्रियिक छह, एकेन्द्रियजाति, आहारकद्विक, आतप, स्थावर, सूक्ष्म, साधारण और तीथङ्कर प्रकृतिके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है । अवस्थित और अवक्तव्य पदका भङ्ग ओधके समान है। द्वीन्द्रिय जातिके भुजगार पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है । अल्पतर पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल तीन समय है । अवस्थित और अवक्तव्य पदका नथा शेप प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । पर्याप्त और अपर्याप्तका भङ्ग देवगतिके समान है ।
__७२६. बस अपर्याप्तकोंमें ध्रुववन्धवाली प्रकृतियोंके भजगार पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल चार समय है । अल्पतर पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल तीन समय है। अवस्थित पदका भङ्ग ओघके समान है। दो वेदनीय, पांच नोकषाय, तियेश्वगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, हुण्डसंस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, असम्प्राप्तासृपाटिकासंहनन, तिर्यश्वगत्यानुपूर्वी, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, अस्थिर आदि पांच और नीचगोत्रके भुजगार पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल चार समय है। अल्पतर पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल तीन समय है । अवस्थित और अवक्तव्यपदकाभङ्ग ओघके समान है। मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वी के भुजगार पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल चार समय है। अल्पतर पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है। अवस्थित और अवक्तव्यपदका तथा तीन विकलेन्द्रिय और त्रस नामकर्मका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि द्वीन्द्रियजाति के भुजगार पदका उत्कृष्टकाल दो समय है। शेष प्रकृतियों के भुजगार और अल्पतर पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है। अवस्थित और अवक्तव्य पदका भङ्ग ओघके समान है।
७२७. औदारिकमिश्रकाययोगी जीवों में मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके भुजगार और अल्पतरपद का जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल क्रमसे तीन समय और दो समय है। अवस्थित और अवक्तव्य पदका भङ्ग ओघके समान है । देवगति चार और नीर्थ
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