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भुजगारबंधे खेत्ताणुगमो
३६५ यका०-णवुस० कोधादि०४-मदि०-सुद०-असंज-अचक्खुदं०-तिण्णिले०. भवसि० अब्भवसि०-मिच्छादि० सण्णि-आहारग त्ति एदे सव्वे असरिसा ओघेण साधेदव्वं । केसिं च धुविगाणं अवत्तव्वं अत्थि केसिं च णस्थि ।
७७१. ओरालियमि०-कम्मइ०-अणाहार० देवगदि०४-तित्थय० तिण्णिपदा के० ? संखेंज्जा। सेसं ओघ । ओरालिय०-वेउब्वियमि०-इत्थिवेद-संजदासंजद-किण्ण-णीलासु उवसमसम्मादिट्ठीसु तित्थय० चत्तारि पदा के० १ संखेज्जा। णवरि किण्ण-णीलासु अवत्त. णत्थि। सेसाणं णिरयादि याव सण्णि ति संखज्ज-असंखेज्जरासीणं अणंतरासीणं च ओघेण साधेदव्वं । एवं परिमाणं समत्तं।
खेत्ताणुगमो ७७२. खेत्ताणुगमेण दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा०-णवदंसणा० मिच्छ०सोलसक०-भय-दु०-ओरालि०-तेजइगादिणव-पंचंत० भुज० अप्प०-अवढि० केवडि खेत्ते ? सव्वलोगे । अवत्त० केवडि खेत्ते ? ला० असंखें । वेउब्विय-आहारदुग. तित्थय० चत्तारि पदा केव० खेत्ते ? लो० असंखें । तिण्णिआयुगाणं [दोपदा०] केव० खेत्ते ? लो० असंखें । सेसाणं सव्वपग० सव्वपदा केव० खेत्ते ? सव्वलोगे । एवं तिरिक्खोघं काययोगी, औदारिक काययोगी, नपुंसक वेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, संज्ञी और आहारक जीवों तक ये सब असदृश पदबाले जीव ओघके अनुसार साध लेना. चाहिये। इनमेंसे किन्हींके ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंका अवक्तव्य पद है और किन्हींके नहीं है।
७७१. औदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मण काययोगी और अनाहारक जीवोंमें देवगति चतुष्क और तीर्थंकर प्रकृतिके तीन पदवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। शेष भङ्ग ओघके समान है। औदारिक मिश्रकाययोगी, वैक्रियिक मिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदी, संयतासंयत, कृष्णलेश्यावाले, नील लेश्यावाले और उपशम सम्यग्दृष्टि जीवोंमें तीर्थंकर प्रकृतिके चार पदवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इतनी विशेषता है कि कृष्ण और नील लेश्यावाले जीवोंमें अवक्तव्य पद नहीं है। शेष नरकगतिसे लेकर संज्ञी तक संख्यात, असंख्यात और अनन्त राशिवाली मार्गणाओंमें ओघके समान साध लेना चाहिये । इस प्रकार परिमाण समाप्त हुआ
क्षेत्रानुगम ७७२. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक शरीर, तेजसशरीर श्रादि नौ और पाँच अन्तरायके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है। वैक्रियिकद्विक, आहारकद्विक और तीर्थङ्करके चार पदोंके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। तीन आयुओंके दो पदोंके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । शेष सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है। इसी प्रकार सामान्य तिर्यश्च, काययोगी,
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