Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 394
________________ भुजगारबंधे अंतराणुगमो अव०ि णत्थि अंतरं । अवत्त० जह० एग०, उक० पदा णत्थि अंतरं । ७६७, णिरसु धुविगाणं दो पदा जह० एग०, उक्क० तो ० । अवट्ठि० णत्थि अंतरं । थी गिद्ध ०३ - मिच्छ० - अनंताणुबंधि०४ तिष्णिपदा णाणावरणभंगो | अवत्त • जह० एग०, उक्क० सत्त रादिंदियाणि । तित्थय० दो पदा जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवट्ठि • णत्थि अंतरं । अवत्त० जह० एग०, उक्क० पलिदो० असं० भागो । अथवा जह० एग०, उक्क० वासपुधत्तं । दो आयु० पगदिअंतरं । सेसाणं तिष्णिपदा जह० एग० उक्क अंतो । अवट्टि० णत्थि अंतरं । एवं सव्वणिरयाणं । णवरि सत्तमाए दोगदिदोआणु ० - दोगोदं थीणगिद्धिभंगो । ७६८. तिरिक्खे ओघं । पंचिंदिय तिरिक्ख ०३ धुविगाणं तिष्णिपदा णिरय गदिभंगो । थीणगि ०३ - मिच्छ० - अट्ठक० ओघं । सेसाणं णिरयगदिभंगो । आयुगाणं पगदिअंतरं । पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज० णिरयोघं । एवं सव्वअपज्ज० - विगलिंदि० - बादर पुढवि ०आउ०- तेउ०- वाउ०- वणष्फ दिपत्तेय० पज्जत्ता । णवरि मणुस अपज्ज० धुविगाणं ३८१ वासपुधत्तं । सेसाणं चत्तारि Q समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व हैं। शेष प्रकृतियोंके चार पदोंके बन्धक जीवोंका अन्तरकल नहीं है। 1 1 ७६७. नारकियों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके दो पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थितपदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं हैं। स्त्यानगृद्धि तीन, मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका भंग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सात दिनरात है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके दो पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थितपदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है, अथवा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है । दो आयुओंके दो पदोंके बन्धक जीवों का अन्तरकाल प्रकृतिबन्धके अन्तरकाल के समान है। शेष प्रकृतियों के तीन पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है । इसी प्रकार सब नारकियोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सातवीं पृथिवी में दो गति, दो आनुपूर्वी और दो गोत्रका भङ्ग स्त्यानगृद्धि प्रकृतिके समान है । ७६८. तिर्यश्नोंमें ओघके समान भङ्ग है । पश्चेन्द्रिय तिर्यवत्रिक ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग नरकगतिके समान है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और आठ कषायका भङ्ग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग नरकगतिके समान है। आयुका भङ्ग प्रकृतिबन्धके अन्तरके समान है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्तकों में सामान्य नारकियोंके समान भङ्ग है । इसी प्रकार सब अपर्याप्तक, विकलेन्द्रिय, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर कायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक पर्याप्त, वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुष्य अपर्याप्तकों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदों के बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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