Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 403
________________ ३६० महाबँधे द्विदिबंधाहियारे ० असंखे | अवट्टि • असंखज्ज० । आहार दुग-तित्थय • मणुसभंगो। सेसाणं पंचिदियभंगो। एवं पुरिसवेदे वि । णवरि तित्थयरस्स ओघं । ८१९. सगे धुविगाणं सव्वत्थो ० अप्प० । भ्रुज ० विसे० | अवट्ठि० असंखे | पंचदंस० - मिच्छ० बारसक० -भय-दुगुं०- ओरालि० तेजा० क० वण्ण ०४ अगु० - उप०प० - णिमि० सव्वत्थो० अवत० । अप्पद अनंतगु० । भुज० विसे० । अवद्वि० असंखेज्ज० । इत्थवे ० - पुरिस० णिरयभंगो । सेसाणं ओघं । अवगद वे० सम्बपगदीणं सव्वत्थो० अवत्त० । भुज • संखेज्ज० । अप्पद० संखेज्ज० । अवट्टि० संखज्ज० । I ८२० कोधकसाए धुविगाणं णवुंसगभंगो । सेसाणं ओघं । एवं माणमाया- लोभाणं । ८२१. मदि० - सुद० धुविगाणं तिरिक्खोघं । मिच्छ० ओरालि • सव्वत्थो० अवत्त० । अप्पद ० अनंतगु० । भुज० विसे० । अवद्वि० असंखेज्ज० । सेसाणं ओघं । विभंगे धुविगाणं देवोषं । मिच्छ० - देवर्गादि० - ओरालि० - वेउच्त्रि ० - वेउव्विअंगो० -देवाणु० - पर०उस्सा०-बादर- पज्जत - पत्तेय० सव्वत्थो० अवत्त० । भुज० - अप्प० असंखेज्जगु० | [ अवट्ठिο "हैं। आहारकद्विक और तीर्थंकर प्रकृतिका भङ्ग मनुष्योंके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग पञ्चेन्द्रियों के समान है । इसी प्रकार पुरुषवेदी जीवोंमें भी जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनमें तीर्थंकर प्रकृतिका भङ्ग घके समान है । ८१६. नपुंसकवेदी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके अल्पतर पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे भुजगार पदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । पाँच दर्शनावरण, मिध्यात्व, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माणके अवक्तव्य पदके बन्धक जीब सबसे स्तोक हैं । इनसे अल्पतर पदके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं । इनसे भुजगार पदके बन्धक ata विशेष अधिक हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। स्त्रीवेद और पुरुषवेदका भङ्ग नारकियों के समान है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघ के समान है । अपगतवेदी जीवों में सब प्रकृतियोंके वक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे भुजगार पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अल्पतर पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । २०. क्रोध कषायवाले जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंका भङ्ग नपुंसकोंके समान है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । इसी प्रकार मान, माया और लोभ कषायवाले जीवोंके जानना चाहिये । २१. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य तिर्यों के समान है । मिथ्यात्व और औदारिक शरीरके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे अल्पर पदके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे भुजगार पदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओधके समान है । विभङ्गज्ञानी जीवों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है । मिथ्यात्व, देवगति, दारिक शरीर, वैककि शरीर, वैक्रियिक आङ्गोपाङ्ग, देवगत्यानुपूर्वी, परघात, उच्छ्रास, बादर, पर्याप्त और प्रत्येक वक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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