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भुजगारबंधे अप्पा बहुआणुगमो
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मिच्छ 5० - अडक० - ओरालि० सव्वत्थो० अवत्त० । भुज० - अप्पद ० असंखेज्ज० । अवट्ठि ० असंखज्ज • ० | सेसाणं सव्वत्थो० अवत्त० । दोपदा संखेज्जगु० । अवट्ठि० असंखेज्ज० । पंचिंदियतिरिक्खपज्ज० - पंचिदियतिरिक्खजोणिणीसु धुविगाणं पंचिदियतिरिक्खोघं । वरि ओरालि० सादभंगो । सेसाणं पि सादभंगो । पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तगेसु धुविगाणं सेसाणं च णिरयोघं ।
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८११. मणुसेसु धुविगाणं ओरालि० सव्वत्थो० अवत्त० । भुज० - अप्पद ० असंखज्ज० ज० । अवट्ठि० असंखेज्ज० । सेसाणं पंचिंदियतिरिक्खभंगो । वेडव्वियछ०आहारदुग - तित्थय० संखज्जगुणं कादव्वं । मणुसपज्जच - मणुसिणीसु तं चैव । वरि संखेज्ज० । मणुस अपज्ज० - सव्व एइंदि ० - सव्वविगलिंदि ० - पंचकायाणं पंचिंदि ० अपज्ज० तिरिक्खअपज्जत्तभंगो । देवाणं णिरयभंगो ।
८१२. पंचिदिए धुविगाणं ओरालि० सव्वत्यो० अवत्त० । भुज० - अप्प ० दोपदा असंख● | अवट्ठि • असंखे । मणुसग ० - मणुसाणु ० - उच्चा० ओघं । सेसं पंचिंदियतिरिक्खभंगो | पंचिंदियपज्जत्तगेसु ओरालि० सादभंगो। सेसं तं चैव ।
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नारकियों के समान है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिध्यात्व, आठ कषाय और औदारिक शरीरके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे दो पदोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । पचेन्द्रिय तिर्यञ्जपर्याप्तक और पचेन्द्रिय तिर्यनयोनिनी जीवोंमें ध्रुव बन्धवाली प्रकृतियोंका भङ्ग सामन्य पञ्चेन्द्रिय तिर्योंके समान है । इतनी विशेषता है कि औदारिक शरीरका भङ्ग साता वेदनीयके समान है । शेष प्रकृतियोंका भी भङ्ग साता वेदनीयके समान है | पञ्चेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्तकों में ध्रुवबन्धवाली और शेष प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य नारकियों के समान है ।
८११. मनुष्यों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियों और औदारिक शरीरके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग पचेन्द्रिय तिर्योंके समान है । किन्तु वैक्रिथिक छह, आहारकद्विक और तीर्थङ्करके पदोंको संख्यातगुणा करना चाहिये । मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में इसी प्रकारसे ही जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि यहाँ संख्यात
कहना चाहिये | मनुष्य अपर्याप्तक, सब एकेन्द्रिय, सब विकलेन्द्रिय, पाँच स्थावरकाय और पन्द्रिय अपर्याप्तकों का भङ्ग तिर्यच अपर्याप्तकों के समान है। देवोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है ।
८१२. पवेन्द्रियों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियों और औदारिक शरीरके अवक्तव्य पदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे भुजगार और अल्पतर इन दो पदोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्र का भङ्ग ओधके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग पचेन्द्रिय तिर्योंके समान है । पनेन्द्रिय पर्याप्तकों में औदारिक शरीरका भङ्ग साता वेदनीयके समान है । शेष भंग उसी प्रकार हैं।.
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