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महाबंधे दिदिबंधाहियारे कायजोगि-ओरालि०-ओरालियमि०-कम्मइ०-णवूस०-कोधादि०४ - मदि० सुद०-असंज०. अचक्खुदं०-तिण्णिले०-भवसि०-अब्भवसि०-मिच्छा०-असण्णि-आहार-अणाहारग त्ति । णवरि ओरालियमि० कम्मइ० अणाहार० देवगदि०४ तित्थय० सव्वपदा लोग० असंखें ।
७७३. एइंदिएसु मणुसायु० ओघं । सेसाणं पगदीणं सव्वपदा सव्वलोगे। एवं मुहुम० । बादरपज्जत्त-अपज्जत्त० धुविगाणं सादादौणं च दसपगदीणं सव्वपदा सव्वलोगे। इत्थि०-पुरिस०-चदुजादि-पंचसंठा०-ओरालि०अंगो०-छस्संघ०-आदाउज्जो०दोविहा०-तस-बादर-सुभग-दोसर०-आदे० जसगि० चत्तारिपदा लोग० संखेंजः । एवं तिरिक्खायु० दोपदा० । मणुसायु०-मणुसग०-मणुसाणु०-उच्चा० सव्वपदा लो० असंखें । णवंस०-एइंदि० हुंडसं०-पर-उस्सा०-थावर सुहुम०-पज्जत्तापज्जत्त-पत्ते साधार०-दूभगअणादें-अजस० तिण्णिप० सव्वलोगे। अवत्त० लो० संखेज्ज० । तिरिक्खग-तिरिक्खाणु०-णीचा० तिण्णिप० सव्वलो० । अवत० लोग० असंखें ।
७७४. पुढवि०-आउ० तेउ० वाउ० सव्वसुहमाणं च एइंदियभंगो। बादरपुढविआउ० तेउ०-वाउ०-तेसिं अपज० धुविगाणं तिण्णि प० सव्वलो० । सादादीणं दसण्हं पगदीणं
औदारिक काययोगी, औदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मणकाययागी, नपुंसकवंदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, तीन लेण्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्याष्टि, असंज्ञी. आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि औदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मण काययोगी और अनाहारक जीवाम देवगति चार और तीर्थङ्कर प्रकृतिके सब पदोंके बन्धक जीवों का क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
७७३. एकेन्द्रियोंमें मनुष्यायुका भङ्ग आपके समान है। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। इसी प्रकार सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंके जानना चाहिए। बादर एकेन्द्रिय और उनके पर्याप्त-अपर्याप्त जीवोंमें ध्रुषवन्धवाली और साता आदि दस प्रकृतियोंके सब पदों के बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। स्त्रीवेद, पुरुषवंद, चार जाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गापाङ्ग, छह संहनन, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, बस, चादर, सुभग, दो स्वर, आदेय और यशःकीर्ति के चार पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकक संख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार तिर्यञ्चायुके दो पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र जानना चाहिए। मनुप्यायु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रक सय पदाक बन्धक जीवांका क्षेत्र लोकके असंख्यात भागप्रमाण है। नपंसकवंद. एकेन्द्रिय जाति, हुण्डसंस्थान, परघात, उच्छास, स्थावर, सूक्ष्म, पयाप्त, अपयाप्त, प्रत्येक, साधारण, दुर्भग, अनादेय और अयशःीति के तीन पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकक संख्यातवें भागप्रमाण है। नियंञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सव लोक है। अवक्तव्य पदकं बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है ।
७४. पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक तथा इनके सब सूक्ष्म जीवोंमें एकेन्द्रियोंके समान भङ्ग है। बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर अग्निकायिक और बादर वायुकायिक तथा उनके अपर्याप्त जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियों के तीन पदों के बन्धक
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