Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 382
________________ ३६६ भुजगारबंधे फोसणाणुगमो ७७८. पंचिंदियतिरिक्ख०३ धुविगाणं तिण्णिपदा सादादिदसण्णं पगदीणं चत्तारि पदा० लोग० असंखें सव्वलो० । थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अट्ठक० णवंस०-तिरिक्खग०[ दुग-] एइंदि०-ओरालि०-हुंडसं० - पर०-उस्सा०-थावर-सुहुम०-पजत्तापजत्त-पत्तेय०-साधार०भग०-अणादें अजस०-णीचा तिण्णिप० लोग० असंखें. सव्वलो० । अवत्त० लो. असंखे । णवरि मिच्छ०-अजस० अवत्त० सत्तचों० । इस्थिवे० तिण्णिप० दिवड्डचोद्द० । अवत्त० खेत० । पुरिस-णिरयगदि-देवगदि-समचदु० दोआणु०-दोविहा०-सुभग-दोसरआदेज०-उच्चा० तिण्णिप० छच्चों । अवत्त० खेत्तः । पंचिंदि०-वेउन्वि०- वेउन्वि०अंगो०-तस० तिण्णिप० बारहचों । अवत्त० खेत्तः । उज्जो० जसगि० चत्तारिप० सत्तचो। चदुआयु०-मणुसग०-तिण्णिजादि-चदुसंठा०-ओरालि अंगो०-छस्संघ०मणुसाणु०-आदावं खेत्तभंगो । बादर०तिण्णिप० तेरह । अवत्त० खेत। ___७७६. पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तेसु धुविगाणं तिण्णिपदा सादादीणं चत्तारिप० लो० असंखें सबलो० । णवूस०-तिरिक्ख०-हुंडसं०-एइंदि-तिरिक्खाणु पर०-उस्सास-थावरसुहुम-पजत्तापज०-पत्तेय. साधार०-दूभग०-अणादें-णीचा० तिष्णिपदा लो० असंखें ____७७८. पंचेन्द्रियतिर्यश्च त्रिकम ध्रवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने तथा साता आदि दस प्रकृतियोंके चार पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, आठ कषाय, नपुंसक वेद, तिथंचगतिद्विक, एकेन्द्रियजाति, औदारिक शरीर, हुंडसंस्थान, परघात, उच्छवास, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, दुर्भग, अनादेय, अयश कीर्ति और नीच गोत्रके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सबलोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मि और अयश:कीर्तिके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम सातबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेदके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़बटे चौदहाराजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। पुरुपवेद, नरकगति, देवगति, समचतुरस्त्र संस्थान, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, सुभग, दो स्वर, श्रादेय और उच्चगोत्रके तीन पदोंक बन्धक जीवोंने कुछ कम छहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। पंचेन्द्रियजाति, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक आंगोपांग और त्रस प्रकृतिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। उद्योत और यशःकीर्तिके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम सातबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । चार आयु, मनुष्यगति, तीन जाति, चार संस्थान, औदारिक अंगोपांग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और आतपके सब पदोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। बादर प्रकृतिके तीन पदोंके क्धक जीवोंने कुछ कम तेरहयटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। ७७९. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें ध्रवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके और सातादि प्रकृतियोंके चार पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सवलोक स्पर्शन किया है। नपुंसक वेद, तियंचगति, हुण्ड संस्थान, एकेन्द्रिय जाति, नियंचगत्यानुपूर्वी, परघात, उच्छवास, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, दुर्भग, अनादेय और नीच क्षेत्रका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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