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महाबंधे द्विदिबंधाहियारे
अंगो० संघ० दोविहा० तस सुभग-दोसर ०-आदें० तिणिप० अट्ठ-बारह ० । अवत्त० अचोह ० | दो आयु दोपदा मणुसग० मणुसाणु० - आदा० उच्चा० सव्वप० अट्ठचोह ० । एइंदि० (०-यावर० तिणिप० अट्ठ-णव ० | अवत्त० अट्ठचौ० । तित्थय० ओघं ।
७८५, ओरालियमि० - वेडव्वियमि० आहार० - आहारमि० कम्मइ० अणाहार० खेतभंगो। णवर ओरालियमि० मणुसायु० दोप० लोग० असंखें० सव्वलो० । कम्मइ०अणाहार • मिच्छत्तं अवत्त० ऍक्कारह० |
७८६. इत्थवेदे धुविगाणं तिष्णिप० सादादीणं दसणं चत्तारिपदा अट्ठचों ο सव्वलो० । थी गिद्धि ०३ - मिच्छ० - अनंताणुबंधि ०४ - बुंस - तिरिक्ख ० हुंड० - तिरिक्खाणु० - दूर्भाग- अणादे०-णीचा० तिष्णिप० अट्ठचों० सव्वलो० । अवत्त० अट्ठचों० । वरि -मिच्छ० अ० अड्ड-णवचो० । णिद्दा-पचला अट्ठक० -भय- दुगुं-ओरालि०-तेजा० क०वण्ण०४- अगु०४-पजत- पत्ते० - णिमि० तिणिप० अट्ठचों० सव्वलो० । अवत्त० खेत्त० ।
है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, पचेन्द्रिय जाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर और आदेयके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयुओंके दो पदोंके बन्धक जीवों तथा मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, श्रातप और उच्चगोत्रके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । एकेन्द्रियजाति और स्थावर प्रकृतिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तीर्थकर प्रकृति सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन ओधके समान है ।
७८५ औदारिकमिश्र काययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रका योगी, कार्मणकाययोगी, और अनाहारक जीवोंमें अपनी-अपनी सब प्रकृतियोंके सब पदोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि औदारिकमिश्रकाययोगी जीवों में मनुष्या के दो पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक है । कर्मयोगी और अनाहारक जीवों में मिध्यात्वके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम ग्यारहवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
७८६. स्त्रीवेदी जीवोंमें ध्रुव बन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके और साता आदि दस प्रकृतियों के चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और सबलोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है ! स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धी चार, नपुंसक वेद, तिर्यञ्चगति, हुण्डसंस्थान, तिर्यगत्यानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठव चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया हैं । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवडे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व के अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और कुछ कम नौवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । निद्रा, प्रचला, आठ कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्ण चतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवडे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवों का
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