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महाधे द्विदिबंधाहिया रे
सव्वलो० । अवत्त० खेत्त० । उज्जो० - जसगि० चत्तारिप० सत्तचों६० । बादर० तिण्णिप० सत्तचोंο ० । अवत्त० त० । अजस० तिण्णिप० सादभंगो । अवत्त० सत्तचों । सेसाणं इत्थवेदादीणं चत्तारिप० खेत्तभंगो । एस भंगो सव्वअपजत्तगाणं विगलिंदियाणं बादर-पुढवि०. ० आउ० तेउ० - वाउ०- बादरवण प्फदिपत्तेय ० पञ्जत्ताणं च ।
७८०. मणुस ०३ पंचिंदियतिरिक्ख अपज्जत्तभंगो | णवरि विसेसो णादव्वो । मिच्छ०अवत्त० सत्तचोद्द० । दोआयु० - वेउव्वियछ० - आहारदुग-तित्थय० सव्त्रपदा खेत ० ।
७८१. देवेषु धुविगाणं तिष्णिपदा० अट्ठ-णवचद्द० । सादादीणं बारसण्णं मिच्छ०उज्जो० चत्तारिपदा० अदु-णवचों । एइंदिय थावरसंजुत्त० [तिष्णिपदा ] अट्ठ-णवचोद० | [ अवत्त० ] सेसाणं [सव्वपदा ] अडचों० । एदेण बीजेण णेदव्वं । सव्वदेवाणं अप्पणी फोसणं दव्वं ।
७८२. एइंदि० - सन्वसुहुम ० - पुढवि० ० आउ० तेउ० - वाउ०- वणप्फदि-नियोद० मणुसायुगं मत्तूणधुविगाणं तिष्णिप० सेसाणं चत्तारिप० सव्वलो० | मणुसायु० दोपदा०
गोत्र के तीन पदके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सवलोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । उद्योत और यशःकीर्तिके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम सातवटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। बादर प्रकृतिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम सातबटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अयशः कीर्तिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सातावेदनीय के समान है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम सातबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेष स्त्रीवेद आदि प्रकृतियों के चार पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । यही भंग सब अपर्याप्तक, विकलेन्द्रिय, बादर पृथिवीकायिक, वादर जलकायिक, बादर अग्निकायिक, वादर वायुकायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर और इनके पर्याप्तक जीवोंके जानना चाहिए ।
७८०, मनुष्यत्रिक में पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकोंके समान भंग है । किन्तु यहाँ जो विशेष हो, वह जान लेना चाहिए । मिध्यात्व के अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम सातबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, वैक्रियिक छह, आहारक द्विक और तीर्थंकर प्रकृतिके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है।
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७८१. देवों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ टे चौदह राजू और कुछ कम नौवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । साता आदिक बारह प्रकृतियाँ, मिध्यात्व और उद्योतके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्थावर सहित एकेन्द्रिय जातिके तीन पदों के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बढे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है | इनके अवक्तव्य पदके तथा शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ वटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी बीजपदके अनुसार शेष प्रकृतियोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन भी जानना चाहिए। तथा सब देवोंके अपना-अपना स्पर्शेन जानना चाहिए ।
७८२. एकेन्द्रिय, सब सूक्ष्म, पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंमें मनुष्यायुको छोड़कर ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियों के तीन पदों के
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