Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 352
________________ भुजगारबंधे अंतराणुगमो ३३६ अवत्त० एग० । अबढि० ओघं ।। ७३०. सुहुमसंप० सव्वाणं भुज०-अप्प० एग०। अवढि० जह. एग०, उक्क० अंतो० । [चक्खुदं० तसपजत्तभंगो। णवरि तेइंदि०चदुरि० भुज० जह० एग० उक्क० वे०] ७३१. असण्णीसु वेउन्वियछ०-मणुसग०-मणुसाणु०-उच्चा० भुज०-अप्प० जह. एग०, उक्क० बेसम० । अवढि०-अवत्त ओघं । सेसाणं भुज-अप्प० जह० एग०, उक० तिण्णिसम० । णवरि इत्थिवेदादिपंचिंदियसंजुत्ताणं पगदीणं उक्कस्सं अप्पदरं बेसमयं । अवढि०-अवत्त० ओघं । एइंदिय-आदाव-थावर-सुहुम-साधारणाणं ओघं । ७३२. आहारगेसु चदुआयु०-वेउब्वियछ आहारदुग-तित्थय० ओघो। मणुसग०मणुसाणु०-उच्चा० भुज० जह० एग०, उक्क० तिण्णिसम० । अप्प० जह० एग०, उक० वेसम० । अवढि०-अवत्त० ओघं । एइंदिय-आदाव-थावर-हुम-साधारणं च ओघं । सेसाणं भुज०-अप्प० जह० एग०, उक्क० तिण्णिस० । अवढि०-अवत्त० ओघं । अणाहार० कम्मइगभंगो । एवं कालं समत्तं । अंतराणुगमो ७३३. अंतराणुगमेण दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा०-छदसणा०-चदुसंज०पदका काल अोधक समान है। ७३०. सूक्ष्मसाम्परायिक जीवोंमें सब प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थित पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। चक्षुदर्शनवाले जीवोंमें त्रसपर्याप्तकों के समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जातिके भुजगार पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। ७३१. असंज्ञी जीवोंमें वैक्रियिक छह, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अवस्थित और अवक्तव्य पदका काल ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय है। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद आदि पश्चेन्द्रियसंयुक्त प्रकृतियोंके अल्पतर पदका उत्कृष्ट काल दो समय है। अवस्थित और अवकव्य पदका काल ओघके समान है। एकेन्द्रियजाति, आतप, स्थावर, सूक्ष्म और साधारणका भड़ ओघके समान है। ७३२. आहारक जीवोंमें चार आयु, वैक्रियिक छह, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ओधके समान है। मनुष्यगति; मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके भुजगार पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय है। अल्पतर पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अवस्थित और अवक्तव्य पदका काल ओघके समान है। एकेन्द्रियजाति, आतप, स्थावर, सूक्ष्म और साधारणका भङ्ग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय है। अवस्थित और अवक्तव्यपदका काल ओघके समान है। अनाहारक जीवोंमें कार्मणकाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है। इस प्रकार काल समाप्त हुआ। अन्तरानुगम. ७३३. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघने पाँच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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