Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 369
________________ महाबंधे हिदिबंधाहियारे उक्क० अंतो० । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पुव्वकोडी देसू० । देवायु० दोपदा० पगदिअंतरं । सेसाणं तिण्णि पदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त० जह० उक्क० अंतो० । एवं संजदा०। ७५३. सामाइ०-छेदो० पंचणा०-चदुदंसणा०-लोभसंज०-उच्चा०-पंचंत० दोपदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवढि० जह० एग०, उक्क० बेसम० । आहारदुग० सादभंगो। णिद्दा-पचला-तिण्णिसंज०-पुरिस-भय-दु०-देवगदि-पसत्थपणुबीस-तित्थय० दो पदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवट्टि. जह० एग०, उक्क० बेसम० । अवत्त. णत्थि अंतरं । सेसाणं संजदभंगो। ७५४. परिहार धुविगाणं दो पदा० जह० एग०, उक्क० अंतो०।अवढि० जह० एग०, उक्क० बेसम० । आहारदुगं चत्तारि पदा० जह० अंतो०, उक्क० अंतो० । तित्थय० तिण्णि पदा०णाणावरणभंगो। अवत्त० णत्थि अंतरं । सुहुमसंप० सव्वाणं० भुज०-अप्प० जह० उक्क० अंतो० । अवढि० जह० एग०, उक्क० एग० । संजदासंजदा० परिहारभंगो। ७५५. असंजदे धुविगाणं दो पदा ओघं । अवढि० जह० एग०, उक्क० चत्तारि सम० । थीणगिद्धि०३-मिच्छ ०-अणंताणुबंधि०४-णवुस-पंचसंठा०-पंचसंघ० उज्जो०अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त हैं और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है। देवायुके दो पदोंका अन्तर प्रकृतिबन्धके अन्तरके समान है। शेष प्रकृतियोंके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवक्तव्य पदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार संयत जीवोंके जानना चाहिये। ७५३. सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, लोभ संज्वलन, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके दो पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। आहारक द्विकका भङ्ग सातावेदनीयके समान है। निद्रा, प्रचला, तीन संज्वलन, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, देवगति आदि प्रशस्त पच्चीस प्रकृतियाँ और तीर्थङ्कर इनके दो पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। प्रवक्तव्य पदका अन्तर काल नहीं है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग संयतोंके समान है। ७५४. परिहारविशुद्धि संयत जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके दो पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तम हर्त है। अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है । आहारकद्विकके चार पदोंका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अवक्तव्य पदका अन्तर काल नहीं है। सूक्ष्मसांपराय संयत जीवोंमें सब प्रकृतियों के भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। संयतासंयत जीवोंका भङ्ग परिहारविशुद्धि संयत जीवोंके समान है। ७५५. असंयत जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके दो पदोंका भङ्ग ओघके समान है। अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है। स्त्यानगद्धि तीन. मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार, नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, उद्योत, अप्रशस्त विहायो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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