Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 375
________________ ३६२ महाबँधे दिबंधाहियारे णवदंसणा ० - मिच्छ० - सोलसक० -भय-दु० - ओरालि० तेजा ० १० क० - वण्ण ०४ - अगु० - उप०णिमि० पंचंत० भुज ० - अप्प ० - अवट्ठि० णियमा अस्थि । सिया एदे य अवत्तगे य | सिया एदेय अवत्तगा । तिण्णिआयुगाणं दो पदा भयणिज्जा । तिरिक्खायु० दो पदा णियमा अत्थि । वेउव्त्रियछ ० - आहारदुग- तित्थय ० अवट्टि० णियमा अत्थि । सेसाणि पदाणि भयणिज्जाणि । सेसाणं सव्वपगदीणं भुज ०- अप्प ० -अवष्टि ०. ० अवत्त ० णियमा अत्थि । एवं ओघभंगो तिरिक्खोधं कायजोगि - ओरालियका ० णवस ० - कोधादि ०४ मदि० १०- सुद० - असंज० - अचक्खुर्द ० - तिण्णिले ० भवसि ० - अब्भवसि ० - मिच्छा० - असण्णि आहारगति । 1 O ७६५. मणुसअपज्जत्त-वेउव्वियमि ० - आहार ०-- आहारमि० - अवगद वे ० - सुहुमसंप ०उवसम० - सासण० -सम्मामि० सव्वाणं पगदीणं सव्वपदा भयणिज्जा | ०. ७६६. एइंदिए धुविगाणं तिण्णि पदा सेसाणं चत्तारि पदा तिरिक्खायु० दो पदा नियमा अत्थि । मणुसायु० दो पदा भयणिज्जा । एवं पुढवि० - आउ० तेउ वाउ ०-वादरवणष्फदिपत्तेय० एदेर्सि बादराणं तेसिं चेव वादरअपज्ज० तेसिं सव्वसुहुम ० वफादि - णियोद एइंदियभंगो | ७६७. ओरालियम ० कम्मइग० - अणाहारगेसु देवगदि ०४ - तित्थय तिष्णि पदा ओघ और आदेश | ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिध्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके बन्धक जीव नियमसे हैं । कदाचित् इन पदोंके बन्धक जीव हैं और अवक्तव्य पदका बन्धक एक जीव है । कदाचित् इन पदोंके बन्धक जीव हैं और अवक्तव्य पदके बन्धक नाना जीव हैं। तीन आयुओं के दो पदवाले जीव भजनीय हैं । तिर्याके दो पदवाले जीव नियमसे हैं । वैक्रियिक छह, आहारक द्विक, और तीर्थङ्कर प्रकृति अवस्थित पदवाले जीव नियमसे हैं। शेष पदवाले जीव भजनीय हैं। शेष सब प्रकृतियों के भुजगार, अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्य पदवाले जीव नियमसे हैं । इस प्रकार ओघ के समान सामान्य तिर्यश्व, काययोगी, दारिक काययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुः दर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिये । ७६५. मनुष्य पर्याप्त, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारक मिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, सूक्ष्मसाम्पराय संयत, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवों में सब पद भजनीय हैं। ७६६. एकेन्द्रियों में ध्रुवमन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पद, शेष प्रकृतियोंके चार पद और तिर्यखायुक्रे दो पदवाले जीव नियमसे हैं । मनुष्यायुके दो पदवाले जीव नियमसे भजनीय हैं। इसी प्रकार पृथिवीकायिक, जलकायिक, अभिकायिक, वायुकायिक, वादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर, इनके बाहर तथा इन्हींके बादर अपर्याप्त और इन्हीं के सब सूक्ष्म, वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंके एकेन्द्रियोंके समान भङ्ग हैं । ७६७. दारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवों में देवगति चतुष्क For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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