Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 358
________________ भुजगारबंधे अंतरानुगमो ३४५ णाणावरणमंगो । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पुव्वकोडी देख० । सेसाणं पंचिदियतिरिक्खभंगो | मणुसायु ० तिरिक्खायुभंगी । ७३६. देवेसु धुविगाणं णिरयभंगो । श्रीणगिद्धि ० ३ - मिच्छ० - अणंताणुबंधि ०४इत्थि ० - ण स ० - पंचसंठा० - पंच संघ० - अप्पसत्थ० दूभग दुस्सर - अणादें ० -- णीचा० चदुष्णं पदाणं जह० एग०, उक्क० ऍकत्तीसं० देसू० । णवरि अवत्त० जह० अंतो ० | पुरिस०समचदु० वज्जरिस० पसत्थ० - सुभग-सुस्सर - आदेंज्ज० उच्चा० तिण्णिपदा सादभंगो । अवतव्वं इत्थवेदभंगो । दोआयु० णिरयभंगो । तिरिक्खगदि-तिरिक्खाणु० -उज्जो० तिष्णिपदा० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, चदुष्णं पि अट्ठारस साग० सादि० । मणुसग०- मणुसाणु ० - तिष्णिपदा सादभंगो । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० अट्ठारस सा० सादि० । एइंदिय - आदाव थावर० तिष्णिपदा० जह० एस० अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० वेसागरोव० सादि० | पंचिंदि ० -ओरालि० अंगो० -तस० तिष्णिपदा० सादभंगो अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० वेसाग० सादि० । तित्थय ० णः णावरणमंगो । एदेण कमेण सव्वदेवाणं अंतरं कादव्वं । ७४०. पंचिंदिय-पंचिंदियपञ्जत्ता० तस० तसपजत्ता० पंचणा० छदंसणा ० चदुसंज०भय-दुर्गु० - तेजइगादिणवणाम० पंचं तराइ० तिष्णिप० ओघं । अवत्त० जह० अंतो०, जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सबका पूर्वकोटिप्रथक्त्व प्रमाण है। तीर्थङ्कर प्रकृति के तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्दर कुछ कम एक पूर्वकोटि है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों के समान है । मनुष्यायुका भङ्ग तिर्यञ्चायुके समान है । ७३६. देवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंका भङ्ग नारकियोंके समान है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिध्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुभंग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्रके चार पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम इकतीस सागर है। इतनी विशेषता है कि अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । पुरुषवेद, समचतुरस्रसंस्थान, वज्रर्षंभनाराचसंहनन, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके तीन पदोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है । अवक्तव्य पदका भङ्ग स्त्रीवेदके समान है । दो आयुओंका भङ्ग नारकियों के समान है । तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और उद्योतके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और चारों पदोंका उत्कृष्ट अन्तर साधिक अठारह सागर है । मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वीके तीन पदोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक अठारह सागर है। एकेन्द्रियजाति, आतप और स्थावरके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागर है। पञ्चेन्द्रियजाति, औदारिक आङ्गोपाङ्ग और त्रसके तीन पदोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागर है। तीर्थंङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इसी क्रमसे सब देवोंमें अन्तर प्राप्त करना चाहिए । ७४०. पञ्चेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस और बस पर्याप्त जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार मंज्वलन, भय, जुगुप्सा, नैजम आदि नौ नामकर्म और पाँच अन्तरायके तीन ४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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