Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 365
________________ ३१२ महाबंध हिदिबंधाहियारे जह० एग०, उक० तेत्तीसं० देसू० । एवं अवत्त । णवरि जह० अंतो० । णवरि थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणुबंधि०४ ओघं। पुरिस-समचदु०-पसत्थ०-सुभग-सुस्सर आदे० तिण्णिपदा सादभंगो। अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० तेत्तीस देसू० । णिहापचला-भय दुगुं०-तेजइगादिणव तिण्णिप० णाणावरणभंगो। अवत्तव्य. णत्थि अंतरं । तिण्णिआयु०-वेउव्वियछ०-मणुस०३-आहारदुगं ओघं । देवायु० दो पदा० जह० अंतो०, उक्क० पुवकोडितिभागं देसू० । तिरिक्खगदि-तिरिक्खाणु०-णीचागो० तिण्णि पदा० इत्थिभंगो । अवत्त० ओघं । चदुजादि-आदाव-थावरादि०४ तिण्णि पदा० जह० एग०, उ० तेत्तीसं सा० सादि० । एवं अवत्त । णवरि जह० अंतो० । पंचिंदि०-पर०-उस्सा०. तस०४ तिण्णि पदा सादभंगो। अवत्त० जह• अंतो०, उक्क० तेत्तीसं सा० सादि० । ओरालि०-ओरालि अंगो० वज्जरिस० तिण्णिप० जह० एग०, उक्क० पुव्वकोडी दे० । ओरालि० अवत्त० ओघ । ओरालि०अंगो० अवत्त० जह० अंतो०, उक० तेत्तीसं० सादि० । वज्जरिस० अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० तेत्तीसं० देसू० । तित्थय० तिण्णिप० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त० जह० अंतो०, उक० पुवकोडितिभागं देसू० । पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। इसी प्रकार अवक्तव्य पदका अन्तरकाल है। इतनी विशेषता है कि अवक्तव्य पदका जवन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इतनी और विशेषता है कि स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारका भङ्ग ओषके समान है । पुरुषवेद, समचतुरस्त्र संस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयके तीन पदोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है। अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। निद्रा, प्रचला, भय, जुगुप्सा और तैजस शरीर आदि नौके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है। तीन आयु, वैक्रियिक छह, मनुष्यत्रिक और आहारकद्विकका भङ्ग ओघके समान है। देवायुके दो पदोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर एक पूर्वकोटिका कुछ कम विभागप्रमाण है। तिर्यश्चगति, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रके तीन पदोका भङ्ग स्त्रीवेदके समान है।अवक्तव्य पदका भङ्ग ओघके समान है। चार जाति, आतप और स्थावर आदि चारके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है । इसी प्रकार अवक्तव्य पदका अन्तरकाल है। इतनी विशेषता है कि इसका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । पञ्चेन्द्रिय जाति, परघात, उच्छवास और सचतुष्कके तीन पदोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है। अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है । औदारिक शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग और वज्रर्षभनाराच संहननके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है। औदारिक शरीरके अवक्तव्य पदका अन्तर ओघके समान है। औदारिक आङ्गोपाङ्गके अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्महर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। वज्रर्षभनाराच संहननके प्रवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर एक पूर्वकोटिका कुछ कम त्रिभागप्रमाण है । अपगतवेदवाले जीवोंमें सब प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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