Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 356
________________ भुजगारबंधे अंतराणुगमो ३४३ अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पुव्वकोडी० देसू० । णवरि तिरिक्खगदि-तिरिक्खाणु०. ओरालि०-णीचा० अवत्त० ओघं । पुरिस०-समचदु०-पंचिंदि०-परघा०-उस्सा०-पसत्थ०तस०४-सुभग-सुस्सर-आदें. तिण्णिपदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पुवकोडी० देसू० । णवरि पुरिसवे० अवत्त० जह० अंतो०, उक० तिण्णिपलिदो० देसू । तिण्णिआयुगाणं दो पदा० जह० अंतो०, उक्क० पुव्वकोडितिभागं देसूर्ण० । तिरिक्खायु० दो पदा० जह० अंतो०, उक्क० पुव्वकोडी सादिरे । वेउव्वियछकं-मणुसग०-मणुसाणु०-उच्चा० ओघं । ७३६. पंचिंदियतिरिक्ख०३ धुविगाणं भुज-अप्प० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवट्टि० जह० एग०, उक्क० तिण्णिसम० । थीणगिद्धि०३-मिच्छ ० अणंताणुबंधि०४तिण्णिपदा० जह० एग०, उक्क० तिण्णिपलिदो० देसू० । अवत्त० जह० अंतो०, उक० तिग्णपलिदो० पुचकोडिपुध० । अपञ्चक्खाणा०४ तिण्णिपदा० जह० एग०, उक्क० पुन्वकोडी देसू० । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पुवकोडिपुध० । इथि तिण्णिपदा० मिच्छ त्तभंगो । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० तिणिपलिदो० देस० । णवुस०-तिण्णिगदिचदुजादि-ओरालि०-पंचसंठा०-ओरालि० अंगो०-छस्संघ०-तिण्णिआणु०-आदाउज्जो० अप्पहै, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सबका कुछ कम एक पूर्वकोटि है। इतनी विशेषता है कि तिर्यश्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, औदारिक आङ्गोपाङ्ग और नीचगोत्रके अवक्तव्य पदका भङ्ग ओघके समान है। पुरुषवेद, समचतुरस्त्रसंस्थान, पञ्चेन्द्रिय जाति, परघात, उच्छवास, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, सुभग, सुस्वर और आदेयके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्षकोटि है । इतनी विशेषता है कि पुरुषवेदके अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। तीन आयओंके दो पदांका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर एक पूर्वकोटिका कुछ कम विभागप्रमाण है। तिर्यञ्चायुके दो पदोंका जवन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक पूर्वकोटि है। वैक्रियिक छह, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रका भङ्ग ओघके समान है। ७३६. पश्चेन्द्रियतिर्यञ्चत्रिकमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदका अघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर तीन समय है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानन्धी चारके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्य है। अप्रत्याख्यानावरण चारक तीन पदाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि पृथक्त्व प्रमाण है । स्त्रीवेद के तीन पदोंका भङ्ग मिथ्यात्वके समान है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तमुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। नपंसकवेद, तीन गति, चार जाति, औदारिक शरीर, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, तीन आनुपूर्वी, श्रातप, उद्योत, अप्रशम्त विहायोगति, स्थावर आदि चार, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्रके तीन पदोंका जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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