Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 353
________________ ३४० महाधे द्विधाहियारे उक० ० भय- दुगुं ० . तेजा० क० वण्ण०४ - अगु० - उप० - णिमि० पंचंत० भुज ० - अप्पद ० - अवट्ठि० बंधंवरं केव • जह० एग०, उक्क० अंगे० । अवत० जह० अंतो०, उक्क० अद्धपोंगल ० । थी गिद्ध ०३ - मिच्छ० - अनंताणुबंधि०४ भुज० - अप्प० - अवट्ठि० जह० एग०, बेछावट्टि • देसू० । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० अद्धपोंगल ० । सादासाद ० चदुणोक०थिराथिर - सुभासुभ-जस०-अजस० तिष्णिपदा जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त० जह० उक० अंतो० । एवमेदाणं याव अणाहारग त्ति एस भंगो । अट्ठक० तिष्णिपदा जह० एग०, उक्क० पुव्वकोडी दे० । अवत्त ० णाणावरणभंगो | इत्थि० तिष्णिपदा जह० एग०, छाago देसू० । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क ० बेछा ० सू० । पुरिस तिष्णिपदा० णाणा० भंगो । अवत्त० जह०: • अंतो०, उक्क ० • बेछावद्वि० सादिरे० | णवुंस०पंचसंठा ० पंच संघ० - अप्पसत्थ० - दूभग दुस्सर- अणादें० तिष्णिपदा० जह० एग०, उक्क० छाडि • सादि० तिष्णि पलिदो ० देसू० । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० बेछावट्टि ० सादि० तिष्णिपलिदो० सू० । तिण्णिआयु० अवत्त० अप्पद० जह० अंतो, उक्क० अणंतका० । तिरिक्खायु० अवत्त० अप्पद० जह० अंतो०, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं ० । उव्वियछ० तिष्णिपदा० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० अनंतका० । उक्क० ० ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तेजस शरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितबन्धका अन्तर कितना है ? जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छयासठ सागरप्रमाण है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, चार नोकषाय, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यशः कीर्ति और अयशःकीर्तिके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त हैं । इसीप्रकार इन प्रकृतियोंका अनाहारक मार्गणातक यही भङ्ग हैं। आठ कषायों के तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है । अवक्तव्यपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। स्त्रीवेदके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो घासठ सागर है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो घासठ सागर हैं । पुरुषवेदके तीन पदोंका अन्तर ज्ञानावरण के समान है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त हैं और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो छयासठ सागर हैं। नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहमन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेयके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो छयासठ सागर, और कुछ कम तीन पल्य है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो छयासागर और कुछ कम तीन पल्य है। तीन श्रयुक्तव्य और अल्पतर पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है । तिर्यखायुके अवक्तव्य और अल्पतर पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सौ सागरपृथक्त्व है। वैक्रियिक छहके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्य पदका Jain Education International 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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