Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 351
________________ ३३८ महाबंधे हिदिबंधाहियारे जह० एग०, उक्क०, बेसम०।सेसाणं ओघं । णवरि जेसिं चत्तारि समयं तेसिं तिण्णि समयं । ७२८. कम्मइ० धुविगाणं थावरपगदीणं च अवढि० जह० एग०, उक्क० तिण्णि सम० । अवत्त० [जहण्णु०] एगस० । सेसाणं अवढि० जह० एग०, उक्क० बेसम० । अवत्त० जहण्णु० एग० । देवगदिपंचग० अवढि० जह० एग०. उक० बेसम० । ७२६. इत्थिवेदे पंचणा-चदुदंस०-चदुसंज. पंचंतरा० पंचिंदियतिरिक्खभंगो। पंचदंस०-दोवेदणी०-मिच्छ०-बारसक०-इत्थिवे०-हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगुं०-तिरिक्खग०-पंचिंदि०-ओरालि०-तेजा-क०-छस्संठाणं-ओरालि.अंगो०-छस्संघ०-वण्ण०४-तिरिक्वाणु०-अगु०४-उज्जो दोविहा०-तस०४-थिरादिछयुगल-णिमि०-णीचा० भुज०-अप्प० जह० एम०, उक० तिण्णिसम० । अवढि०-अवत्त० ओघं । मणुसग०-मणुसाणु०-उच्चा० भुज० जह० एग०, उक० तिण्णिस० । अप्प०-अवढि०-अवत्त० ओघ । सेसाणं भुज०अप्प० जह० एग०, उक्क० वेसम० । अवढि०-अवत्त० ओघं । पुरिसवेदे सो चेव भंगो। णवरि पुरिस०दोपदा जह० एग०, उक्क० तिण्णिस० । अवढि०-अवत्त० ओघं । णqसगे ओघं । णवरि इत्थि०-पुरिस० देवगदिभंगो । अवगदवे. सधपगदीणं भुज-अप्प०. ङ्कर प्रकृतिके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है। शेष प्रकृतियोंके पदोंका काल ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि जिनका ओघसे चार समय काल है उनका काल यहाँ तीन समय है।। __७२८. कार्मणकाययोगी जीवोंमें ध्रुव और स्थावर प्रकृतियोंके अवस्थित पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्टकाल तीन समय है । अवक्तव्य पदका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है । शेष प्रकृतियों के अवस्थित पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है। अवक्तव्य पदका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। देवगतिपञ्चकके अवस्थित पदका काल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है। __७२६. स्त्रीवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तियञ्चोंके समान है । पाँच दर्शनावरण, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, बारह कषाय, स्त्रीवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तिर्यश्चगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, छह संस्थान, औदारि आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, वर्णचतुष्क, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, उद्योत, दो विहायोगति, सचतुष्क, स्थिर आदि छह युगल, निर्माण और नीचगोत्रके भजगार और अल्पतर पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल तीन समय है। अवस्थित और अवक्तव्य पदका काल ओघके समान है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके भुजगार पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल तीन समय है। अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्य पदका काल ओघके समान है। शेष प्रकृतियों के भुजगार और अल्पतर पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है। अवस्थित और प्रवक्तव्य पदका काल अोधके समान है। पुरुषवेदी जीवोंमें वही भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि पुरुषवेदके दो पदोंका जघन्यकाल एक समय हैं और उत्कृष्टकाल तीन समय है। अवस्थित और अवक्तव्य पदका काल ओधके समान है । नपुंसकवेदी जीवोंमें ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद और पुरुषवेदका भङ्ग देवगतिके समान है । अपगतवेदी जीवोंमें सब प्रकृतियोंके भुजगार, अल्पतर और अवक्तव्य पदका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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