Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 348
________________ भुजगारबंधे कालाणुगमो ३६५ अंतो० । अवत्त० जहण्णु० एगस० । एवं ओघभंगो कायजोगि-कोधादि०४-मदि०सुद०-असंज०-अचक्खुदं०-तिण्णिले०-भवसि० अब्भवसि०-मिच्छादि० । ७२१. णिरएसु धुविगाणं भुज० अप्प० जह० एग०, उक्क० बेसम० । अवट्ठि० जह० एग०, उक्क० अंतो० । एवं सेसाणं पि । णवरि अवत्तव्वगो यस्स अत्थि तस्स एय. समयं । एवं सव्वणिरयाणं ।। ७२२. तिरिक्खेसु ओघो। णवरि धुविगाणं अवसव्वं णत्थि । मणुसग०-मणुसाणु०. उच्चा० देवगदिभंगो। पंचिंदियतिरिक्खसु मणुसग०-चदुजादि-मणुसाणु०-थावर-आदावसुहुम-साधार०-उच्चा० देवगदिभंगो । सेसाणं भुज --अप्पद० जह० एग०, उक्क० तिणि सम० । सेसं ओघं । पंचिंदियपज्जत्त-जोणिणीसु एवं चेव। णवरि अपज्जत्तणाम देवगदिभंगो। पंचिंदिय०अपज्ज० धुविगाणं भुज०-अप्पद० जह० एग०, उक्क० तिण्णि सम० । अवढि० जह० एग०, उक्क. अंतो० । सादासाद०-पंचणोक०-तिरिक्खग०पंचिंदि०-इंडसं०-ओरालि.अंगो०-असंप०-तिरिक्खाणु०-तस०-बादर-अपज्ज०-पत्ते०-अथिरादिपंच-णीचा. भुज०-अप्पद० जह० एग०, उक० तिण्णि सम० । अवढि० ओघं । सेसं णिरयभंगो। काल एक समय है। इसीप्रकार ओघके समान काययोगी, क्रोधादि चार कपायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, तीन लेश्यावाले, भव्य, अभव्य और मिथ्यादष्टि जीवोंके जानना चाहिये। ७२१. नारकियोंमें ध्र ववन्धवाली प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है । अवस्थितपदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार शेष प्रकृतियोंके पदोंका काल जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि जिस प्रकृतिका अवक्तव्यपद है उसका जघन्य और. उत्कृष्टकाल एक समय है। इसीप्रकार सब नारकियोंके जानना चाहिये। ७२२. तिर्यञ्चोंमें ओघके समान काल है। इतनी विशेषता है कि ध्र वबन्धवाली प्रकृतियोंका अवक्तव्यपद नहीं हैं। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रका भङ्ग देवगतिके समान है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चोंमें मनुष्यगति, चार जाति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, स्थावर, आतप, सूक्ष्म, साधारण और उच्चगोत्रका भङ्ग देवगतिके समान है। शेष प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य काल एक मय है और उत्कृष्टकाल तीन समय है। शेष भङ्ग ओघके समान है। पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यश्च और योनिनी जीवोंमें इसीप्रकार जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनमें अपर्याप्त नामका भङ्ग देवगतिके समान है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें ध्र वबन्धवाली प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल तीन समय है। अवस्थित पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्टकाल अन्तमुहूर्त है। सातावेदनीय, असातावेदनीय पाँच नोकपाय, तिर्यश्चगति, पञ्चेन्द्रियजाति; हुण्डसंस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, असम्प्राप्तामृपाटिका संहनन, विगत्यानुपूर्वी, त्रस, बादर, अपयोप्त, प्रत्येक, अस्थिर आदि पाँच और नीचगोत्रके भजागार और अल्पतरपदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल तीन समय है । अवस्थितपदका काल ओघके समान है । शेप भङ्ग नरकियोके समान हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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