Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 346
________________ भुजगारधंधे कालाणुगमो छेदो० धुविगाणं तिण्णिपदा कस्स० ? अण्ण । णिद्दा-पचला-तिण्णिसंज०-पुरिस०-भयदुगुं० देवगदि-पंचिंदि०-तिण्णिसरीर-समचदु०-वण्ण०४-देवाणु०-अगु०४-पसत्थ०-तस० ४-सुभग-सुस्सर-आदे-णिमि०-तित्थय० तिण्णिपदा कस्स ? अण्ण । अवत्तव्व० कस्स ? अण्ण. उवसम० परिवद० पढमसमय मणुस० मणुसिणीए वा। सेसाणं ओषो । परिहार० आहारकायजोगिभंगो। [सुहुमे भुज० कस्स० १ अण्ण० उवसम परिवद । वेपदा कस्स० १ अण्ण० उवस० खवग० ।] ७१६, संजदासंज०-सम्मामि०-[ सासाद० ] अणुदिसभंगो। णवरि संजदासंजदस्स तित्थयरस्स अवत्तव्वं ओघेण साधेदव्यो । असंजदा०तिरिक्खोघं। एवं तिण्णिलेस्साणं । णवरि किण्ण-णीलाणं तित्थयरस्स अवत्तव्वं णत्थि । तेउए धुविगाणं तिण्णिपदा कस्स० १ अण्ण । सेसाणं ओघादो साधेदव्वं । एवं पम्माए। वेदगे धुविगाणं तिण्णि पदा कस्स० १ अण्ण । सेसं ओघं । असण्णीसु धुविगाणं तिण्णि पदा कस्स० ? अण्णदरस्स । सेसाणं ओषादो साधेदव्वं । एवं सामित्तं समत्तं । कालाणुगमो ७२०. कालाणुगमेण दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा०-णवदंसणा०-दोवेदहै। इसी प्रकार शंप प्रकृतियोंके विषयमें जानना चाहिए। सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव उक्त पदोंका स्वामी है। निद्रा, प्रचला; तीन संज्वलन, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, देवगति, पश्चेन्द्रिय जाति, तीन शरीर, समचतुरस्त्र संस्थान, वर्णचतुष्क, देवगत्यानुपूवी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति । सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण और तीर्थङ्कर इनके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव उक्त पदोंका स्वामी है। अवक्तव्यपदका स्वामी कौन है ? उपशमश्रेणिसे गिरनेवाला प्रथम समयवर्ती अन्यतर मनुष्य या मनुष्यिनी अवक्तव्यपदका स्वामी है । शेष प्रकृतियोंके पदोंका भङ्ग अोधके समान है । परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंमें आहारककाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है । सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीवोंमें भुजगारपदका स्वामी कौन है ? उपशमश्रेणिसे गिरनेवाला अन्यतर जीव भुजगारपदका स्वामी है। अल्पतर और अवस्थितपदका स्वामी कौन है ? अन्यतर उपशामक और क्षपक उक्त दो पदोंका स्वामी है। ७१६. संयतासंयत, सम्यग्मिध्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका भङ्ग अनुदिशके समान है। इतनी विशेषता है कि संयतासंयत जीवोंमें तीर्थङ्कर प्रकृतिका अवक्तव्यपद ओघसे साध लेना चाहिए। असंयतोंमें सामान्य तिर्यश्चोंके समान भङ्ग है । इसीप्रकार तीन लेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि कृष्ण और नील लेश्यावाले जीवोंमें तीर्थङ्करका अवक्तव्य पद नहीं है । पीत लेश्यावाले जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव उक्त पदोंका स्वामी है । शेष प्रकृतियोंके पदोंका स्वामित्व ओघसे साध लेना चाहिए। इसीप्रकार पद्मलेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिए । वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें ध्र वबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव उक्त पदोंका स्वामी है।शेषके प्रकृतियोंके पदोंका स्वामित्व ओघके समान है। असंज्ञी जीवोंमें ध्रव प्रकृतियोंके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव उक्त पदोंका स्वामी है। शेष प्रकृतियोंके पदोंका स्वामित्व ओवसे साध लेना चाहिए । इसप्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ ? कालानुगम ७५०. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-आध और आदेश। ओघसे पाँच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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