Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 344
________________ भुजगारबंधे सामित्तानुगमो ३३१ ओधि० चक्खुदं० - अचक्खुदं० - ओधिदं ० - सुकले ० भवसि ० सम्मादि ० - खइगस ०- उवसम०सण- आहारगति ओघो। णवरि पंचमण ० पंचवचि ० - ओरालिय० मणुसभंगी । 1 ७१३. ओरालियमि० धुविगाणं भुज० अप्पद० अवट्ठि० कस्स० ? अण्ण० | सेसाणं ओघं । देवगदि ०४ - तित्थय० तिष्णिपदा० कस्स० १ अण्ण० । मिच्छ० तिष्णिपदा कस्स ? अण्ण० । अवत्त ० कस्स ० १ सासण० परिवदमाण ० पढमसमयमिच्छादिट्ठिस्स । ७१४. वेउव्वियका० देव - णेरहगभंगो । वेडन्नियमि० धुविगाणं तिष्णिपदा कस्स० १ अण्ण० देवस्स वा णेरइय० । मिच्छत्तस्स ओरालियमिस्तभंगो । सेसाणं ओघो । आहार - आहारमि० धुविगाणं तिष्णिपदा कस्स० १ अण्ण० । सेसं ओघं । कम्मइय० धुविगाणं तिण्णि पदा० कस्स० ? अण्ण० । सेसाणं तिण्णि पदा० कस्स० १ अण्ण० । अवत्त० कस्स० १ अण्ण० परियत्तमा० पढमसमयबं० । मिच्छ० - देवर्गादि०४तित्थय • ओरालियमस्तभंगो । एवं अणाहार० । ० ७१५. इत्थि० पंचणा० चदुदंस० - चदुसंज० - पंचत तिष्णिपदा कस्स० १ अण्ण० । णिद्दा - पचला - भय - दुगुं० - तेजा० - क० याव णिमिण त्ति तिण्णि पदा कस्स० १ काययोगी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, चक्षुः दर्शनी, अचतुदर्शनी, अवधि - दर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, भव्य, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, संज्ञी और आहारक जीवों में ओघ के समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी और दारिककाययोगी जीवोंमें मनुष्योंके समान भङ्ग है । ७१३. औदारिकमिश्र काययोगी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव उक्त पदोंका स्वामी है। शेष प्रकृतियों के पदोंका स्वामी ओघके समान है । देवगति चतुष्क और तीर्थङ्कर प्रकृतिके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव उक्त पदोंका स्वामी है । मिध्यात्वके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव उक्त पदोंका स्वामी है । अवक्तव्य पदका स्वामी कौन है ? सासादन सम्यक्त्वसे गिरनेवाला प्रथम समयवर्ती मिध्यादृष्टि जीव अवक्तव्य पदका स्वामी है । ७१४. वैक्रियिककाययोगी जीवों में देवों और नारकियोंके समान भङ्ग है । वैक्रियिकमिश्रकायोगी जीवों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर देव और नारकी जीव उक्त पदोंका स्वामी है । मिध्यात्वका भङ्ग श्रदारिकमिश्रकाययोगी जीवों के समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदों का स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव उक्त पदोंका स्वामी है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । कार्मणकाययोगी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव उक्त पदोंका स्वामी है । शेष प्रकृतियोंके तीन पदोंका स्वामी कौन है ! अन्यतर जीव उक्त पदोंका स्वामी है। अवक्तव्य पदका स्वामी कौन है ? अन्यतर परिवर्तमान प्रथम समयमें बन्ध करनेवाला जीव अवक्तव्य पदका स्वामी है । मिथ्यात्व, देवगति चार और तीर्थङ्करका भङ्ग औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंके समान है। इसी प्रकार अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए । ७१५. स्त्रीवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव तीन पदोंका स्वामी है। निद्रा, प्रचला, भय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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