Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 331
________________ महाबंध धिंधाहियार जहि विसं० । यहि विसं. । पुरिस० जहि० संखेंज । यहि विसं० । देवायु० ज हि असंखेंज । यहि विसं । हस्स-रदि-भय-दुगु० ज हि संखेंज । यहि विसे० । देवगदि--चदुसरीर० ज०हि० संखेज । यहि. विसे । णिदा-- पचलाणं ज हि संखेज्ज ० । यहि विसेअरदि-सोग-अजस० ज०हि० संखेज०। यहि विसे० । असादा० जहि. विसे । यहि विसे० । एवं संजदा० । ६८३. सामाइ.--वेदोव० सव्वत्थो लोभसंज- जहि । यढि० विसे० । पंचणा०--चदुदंस-पंचंत• जटि संखेंजः । यहि विसे० । मायसंज० ज०हि. संखेज्ज । यहि. विसे । माणसंज० ज०वि० विसे० । यहि विसे० । कोधसंज. ज०हि. विसे० । यट्टि० विसे । जस०--उच्चा० ज०हि० संखेज । यहि विसे० । सादा० ज०हि विसे०। यहि विसे०। पुरिस० ज द्वि० संखेज । यट्टि. विसे० । देवायु० ज०हि असंखेज० । यहि विसे । उवरिं मणवज वभंगो । ६८४. परिहार० सव्वत्थोवा देवायु० ज हि० विसे० । यहि विसे । पंच संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे देवायुका जघन्य स्थितिवन्ध असंख्यातगुरणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे हास्य, रति, भय और जुगुप्साका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे देवगति और चार शरीरका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे निद्रा और प्रचलाका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है । इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है । इससे अरति, शोक और अयशःकीर्तिका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सातावेदनीयका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसीप्रकार संयत जीवोंके जानना चाहिए । ६८३. सामायिकसंयत और दोपस्थापनासंयत जीवों में लोभसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तराय कर्मका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है ! इससे मायासंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे मानसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे क्रोधसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यश-कीर्ति और उच्च गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सातावेदनीयका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पुरुपवेदका जघन्य स्थितियन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे देवायुका जघन्य स्थितिवन्ध असंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे आगे मनःपर्ययज्ञानी जीवोंके समान अल्पबहुत्व है। ६८४. परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंमें देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच नोकपाय, देवगति, चार शरीर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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